दोस्तों महाभारत में पांड्वो और कौरवो के बीच बहुत बड़ा महासंग्राम हुआ था जिसे आज पूरी दुनिया जानती है और महाभारत में एक से बढ़कर एक महारथी थे जिसमे एक थे युधिष्ठिर तो आज Yudhishtir ki kahani in Hindi – महान युधिष्ठिर की कथा आपको सुनाने जा रहा हूँ।
जहाँ युधिष्ठिर ने महाभारत जैसे महासंग्राम के शुरू होने से पहले कुछ ऐसा किया था जिसे देख कौरवो के होश उड़ गये थे। ऐसा क्या हुआ था उस रणभूमि में के सभी चकित रह गये थे चलिए कहानी के माध्यम से विस्तार से जानते है:
Yudhishtir ki kahani in Hindi – महान युधिष्ठिर की कथा
पाँचों पाण्डवों में युधिष्ठर सबसे बड़े थे । वे धर्म एवं सत्य की साक्षात् मुर्ति थे । शत्रु भी इनके गुणों की सराहना करते थे । हस्तिनापुर आकर उन्होंने समस्त हस्तिनापुर वासियों को अपने श्रेष्ठ व्यवहार एवं शान्त स्वभाव से आकर्षित कर लिया था ।
अपने पराक्रमी भाइयों के बल पर बड़े – बड़े गण राज्यों को जीत कर उन्होंने राजसूय यज्ञ किया उस यज्ञ में राजाओं ने इन्हें प्रचुर धन – दौलत भेंट की । Yudhishtir ki kahani in Hindi
कौरवों में ज्येष्ठ दुर्योधन ईर्ष्या से जल उठा और परिणामतः सर्वनाशी महाभारत का महासमर हुआ । युधिष्ठिर के पक्ष में श्रीकृष्ण तथा सात अक्षोहिणी सेना थी । उधर कौरवों के पक्ष में अनेक महारथी , पूरी यादव सेना और अन्य असंख्य सैन्य बल था ।
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कहा जाता है कि सत्य के प्रभाव से ही इनका रथ पृथ्वी से ऊपर उठकर चलता था । महाभारत के युद्ध में ‘ अश्वत्थाम हतो , नरो वा मुँजरो वा ‘ कहने पर और वह भी श्रीकृष्ण के समझाने पर ही यह असत्य को सत्य का बाना पहिनाने को तैयार हुए ।
महाभारत युद्ध में विजय प्राप्ति के बाद , अनेक वर्षों तक राज्य कर ये सशरीर स्वर्ग सिधारे। यहाँ इन के शील के बारे में एक रोचक प्रसंग प्रस्तुत कर रहे हैं ।
Yudhishtir ki kahani in Hindi श्रीकृष्ण सन्धि प्रस्ताव लेकर हस्तिानापुर गए । वह प्रत्येक दशा में युद्ध को टालना चाहते थे। उन्होंने सभा में यहाँ तक कहा कि पाण्डव पाँच गाँव लेकर ही सन्तुष्ट हो जाएंगे ।
पर दुष्ट दुर्बुद्धि दुर्योधन ने इसे पाण्डवों की कमजोरी समझा और कहा कि वह उन्हें सुई की नोक के बराबर भूमि भी नहीं देगा । इसके विपरीत उसने श्रीकृष्ण का अपमान किया । वह उन्हें बन्दी बनाने को आगे बढ़ा ।
तब विवश होकर श्रीकृष्ण ने वहाँ अपना विकराल स्वरूप प्रदर्शित किया । उस प्रकाशपुंज को अन्धे धृतराष्ट्र ने भी देखा वे सब हतप्रभ रह गए । श्रीकृष्ण निराश लौट आए ।
कुन्ती ने श्रीकृष्ण को चलते समय कहा था कि वह समय आ गया है जिस दिन के लिए क्षत्राणियाँ बालों की लाज गर्भ धारण करती हैं ।
द्रोपदी ने कहा था ‘ भैया ( बालों को दिखाकर ) इनकी लाज रखना । ” युद्ध की तैयारियाँ शुरू हुई । दोनों सेनाएँ कुरुक्षेत्र के मैदान में आमने – सामने खड़ी हुईं ।
अर्जुन बोले , ‘ श्रीकृष्ण मेरा रथ के दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा करो । मैं युद्ध की इच्छा रखने वालों ( कौरवों ) के दल को देखना चाहता हूँ । Yudhishtir ki kahani in Hindi
उसी समय श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया और उसका व्यामोह दूर किया । युद्ध की घोषणा हुई । तभी यकायक युधिष्ठिर रथ से उतर कर पैदल ही निःशस्त्र कौरव ” सेना की ओर जाने लगे ।
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लोगों ने सोचा कि पाण्डवों ने डर कर हार स्वीकार कर ली । लेकिन ऐसा नहीं था ।
युधिष्ठिर भीष्म पितामह के रथ के सामने हाथ जोड़ कर खड़े हो गए और उनसे युद्ध प्रारम्भ करने की स्वीकृति माँगी । साथ उन्होंने उनका आशीर्वाद भी मांगा भीष्म पितामह प्रसन्न हो उठे और उन्होंने उन्हें विजय का आशीर्वाद दिया ।
इसी प्रकार क्रमशः द्रोणाचार्य ( गुरुवर ) , कृपाचार्य से भी उन्होंने रण करने की स्वीकृति और आशीर्वाद माँगा जो उन्होंने प्रसन्न हो दिया ।Yudhishtir ki kahani in Hindi
इस प्रकार का शील था- युधिष्ठिर का युद्ध के समय के भीषण क्षणों में भी जो शिष्ट परम्परा को नहीं भूले । यही कारण था कि वे दुर्योधन को भी सुयोधन कहकर पुकारते और उसे सम्मान देते थे ।
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