कहते है कार्य को करने की इच्छा शक्ति अगर मन में जाग्रत रहती है तो असंभव सा दिखने वाला कार्य भी संभव और सरल बन जाता है कुछ ऐसा ही आज की इस कहानी में भी है जिसका शीर्षक है Shree Ram or Gilahari ki kahani – हनुमान और गिलहरी की कहानी।
आप सभी में से बहुत से लोग कहानी का शीर्षक पढ़ते ही कहानी के बारे में समझ गये होंगे कि आज की हमारी कहानी में क्या है? लेकिन फिर भी बहुत से लोग जो इस बारे में कुछ नही जानते है उनके लिए आज की यह कहानी लेकर आया हूँ।
कहानी में एक छोटी सी गिलहरी जो कि राम सेतु के कार्य में अपनी भी भागीदारी सुनिश्चित कराती है और राम सेतु तैयार करने में साथ देती है और इस कार्य के बदले में उसे पुरुस्कार स्वरूप कुछ ऐसा मिलता है जो कि त्रेता युग से अब तक उसके पास है Shree Ram or Gilahari ki kahani – हनुमान और गिलहरी की कहानी चलिए कहानी को विस्तार से जानते है।
Shree Ram or Gilahari ki kahani – हनुमान और गिलहरी की कहानी
कहते है जब सीता जी को जब रावण चुराकर लंका ले गया तो उसके कुकर्मों की सजा देने श्री राम ने लंका पर आक्रमण करने का निश्चय किया। उन्हें लंका तक जाने के लिए पुल की आवश्यकता अनुभव हुई। उन्होंने भगवान शिव की आराधना की और समुद्र देव के अनुसार समुद्र पर सेतु निर्माण कार्य की शुरुआत की।
सेतु निर्माण कार्य का दायित्व नल व नील नाम के दो वानरों को मिला था। वे दोनों पुल बनाने की कला में बहुत दक्ष थे। शेष वानरों ने उनका भरपूर सहयोग किया। सेतु निर्माण कार्य तेजी से चल रहा था। सुग्रीव, अंगद, हनुमान, रिक्षराज जामवन्त आदि सभी बड़े उत्साह से सेतु बनाने में संलग्न थे। Shree Ram or Gilahari ki kahani
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लाखों वानर रीछ इधर – उधर दौड़ – भाग रहे थे । कोई चट्टानें उठा रहा था, कोई विशालकाय वृक्षों को ही जड़ समेत उठा कर समुद्र में डाल रहा था । चारों और उथल – पुथल मची थी। नल , नील उन सभी से सेतु तैयार कर रहे थे।
अचानक हनुमान की दृष्टि एक छोटी गिलहरी की ओर गई। वह अपने शरीर को जल में भिगो कर बालू के कण ही समुद्र में डाल रही थी और यह बार बार कर रही थी।
हनुमान ने पूछा , “ अरी , तू यह क्या कर रही है तू थक कर चूर हो जाएगी। हो सकता है कि कहीं किसी वानर के पैरो ने नीचे दब कर प्राण ही न खो दे।
” गिलहरी बोली, ” मैं भी राम जी के पुल बनाने के काम में प्राणपण से जुटी हूँ। मैं चाहती हूँ पुल शीघ्र बने ताकि दुष्ट रावण का जल्दी ही सर्वनाश किया जा सके। ” उसकी भक्ति और भावना देख हनुमान दंग रह गए।
Shree Ram or Gilahari ki kahani समीप की शिला पर बैठे श्री राम यह सब देख, सुन रहे थे। उन्होंने संकेत से हनुमान से उस छोटी सी गिलहरी को पास लाने को कहा। हनुमान जी उसे अपने हाथ पर बैठा कर राम जी के समीप लाये।
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राम जी ने गिलहरी की मेहनत को देखते हुए उसकी हिम्मत और कार्यशीलता को सराहा और गिलहरी की पीठ पर अपने हाथ की तीन उंगलियाँ फेरीं। तभी से उसकी पीठ पर तीन निशान बनते चले आ रहे हैं।
यह सच है कि वानरों और रीछों की तुलना में गिलहरी का पौरुष नगण्य था, पर जहाँ तक भावना का प्रश्न है गिलहरी की भावना बड़ी थी। श्री राम ने भावना पर ही मुग्ध होकर उसे यह पुरस्कार प्रदान किया था जो आज तक उसे प्राप्त होता चला आ रहा है। हमें भी राष्ट्र कार्य में इसी भावना से कार्य करना चाहिए। Shree Ram or Gilahari ki kahani