Shree Ram ki Kahani in Hindi – जब वसिष्ठ को मिलाया गुह से

1
Shree Ram ki Kahani in Hindi 
Shree Ram ki Kahani in Hindi 

भारत भूमि मर्यादा पुरुषोत्तम, सत्यवादी, कर्मनिष्ठ और प्रजा के लिए हमेशा भला सोचने वाले राजा श्री राम जी जैसे महान राजा के लिए सदा धन्य रहेगी।  आज मैं आपको Shree Ram ki Kahani in Hindi के बारे में बताने वाला हूँ जब श्री राम जी ने अपने गुरु वसिष्ठ को मिलाया गुह से।

अब आप यह सोच रहे होंगे यह गुह कौन था और श्री राम जी ने उसे अपने गुरु वसिष्ठ से क्यों मिलाया ? क्या कारण था कि श्री राम जी को स्वयं उसे वसिष्ठ जी से मिलाना पड़ा चलिए इस कहानी को विस्तार से जानते है…

Shree Ram ki Kahani in Hindi – जब वसिष्ठ को मिलाया गुह से

श्री राम का चरित्र इस देश की संस्कृति का प्राण है । उसका एक छोर मर्यादा पुरुषोत्तम स्वरूप है तो दूसरा छोर दीन – बन्धु स्वरूप है । अत्याचारी रावण के लंका से गंगा तक फैले हुए राक्षसी प्रभाव को अपने अद्भुत संगठन कौशल के बल पर वानर , भालू एवं रीक्ष जैसी वन्य जातियों के संगठन से नष्ट कर समूचे देश में एक नवीन चेतना , आत्म विश्वास एवं सुरक्षा का भाव उत्पन्न किया ।

अहिल्या उद्धार , निषाद मिलन एवं शबरी के जूठे बेर खाकर जहाँ राम ने सामाजिक प्रतिष्ठा , समता एवं स्नेह की सीमाओं को तंग घेरे में से निकाल कर एक नया अर्थ एवं स्वरूप प्रदान किया । Shree Ram ki Kahani in Hindi

जब बात स्वयं के ऊपर आई तो प्रचारंजन के उच्च आदर्शों की रक्षा हेतु सीता जैसी साध्वी के परित्याग में भी पीछे नहीं हटे । इसी कारण उनका दिव्य चरित्र युग – युग से देश को दिशा दे रहा है और भविष्य में भी देता रहेगा । यहाँ प्रस्तुत है उनके प्रेम का एक अनूठा प्रसंग ।

चित्रकूट में भरत और शत्रुघ्न को श्रीराम के पास लाकर गुह ने कहा , ” भगवन ! मुनिवर वसिष्ठ , तीनों माताएँ , नगरवासी , सेवक , सेनापति , मंत्री आदि भी दर्शनों की प्रतीक्षा में हैं । ” श्री राम यह सुन तुरन्त उठ खड़े हुए और शत्रुघ्न को वहाँ सीता के पास छोड़कर लक्ष्मण , भरत और गुह के साथ अयोध्या के समाज के स्वागत करने के लिए चले ।

बन्धु गुरु सर्वप्रथम श्री राम ने गुरु वसिष्ठ जी के श्री चरणों की रज मस्तक पर लगा कर प्रणाम किया । गुरुदेव ने उन्हें आर्शीवाद दिया । श्री राम प्रत्येक से मिले ।

Shree Ram ki Kahani in Hindi  गुह की भी वसिष्ठ के चरण स्पर्श करने की उत्कट इच्छा थी , पर वसिष्ठ जी में छुआछूत का भेद है । वे गुह को छूते नहीं हैं । गुरु जी को कष्ट न हो , उन्हें बुरा न लगे , इसलिए उसने दूर से ही प्रणाम करके कहा , “ महाराज , मैं श्रृंगवेदपुर का भील हूँ ।

” वसिष्ठ जी ने दूर से ही उसे आशीर्वाद दिया ।

श्री राम को यह अच्छा न लगा । उन्होंने सोचा यदि गुरुदेव भील को गले नहीं लगायेंगे तो फिर राम राज्य कैसे आयेगा । उनकी इच्छा थी कि गुरुदेव गुह को गले लगाएँ । पर वे स्वयं गुरुदेव से यह तो नहीं कह सकते थे कि आप भूल कर रहे हैं । उन्होंने एक युक्ति सोची । Shree Ram ki Kahani in Hindi

गुह का हाथ पकड़कर वे वसिष्ठ जी के पास जाकर बोले , ” गुरुदेव , आपने इसे पहिचाना । यह मेरा मित्र है । ‘ वसिष्ठ जी श्री राम का अभिप्राय समझ गए ।

गुरु वसिष्ठ ने राम सखा मानकर गुह को गले लगाया । गुह और वसिष्ठ जी को गले मिलते देखकर राम जी की आँखों में हर्ष के आँसू आ गए ।

आकाश से देवताओं ने पुष्प वृष्टि की । श्री राम जी सेतु बन गए । उन्होंने दोनों किनारों को मिला दिया । यह कोई सामान्य बात नहीं थी । वस्तुतः यह एक क्रान्ति थी ।

तुलसीदास जी ने लिखा है कि जब भरत – राम मिले तो देवताओं ने पुष्प वृष्टि की । कारण स्पष्ट है । श्री राम – भरत मिलना सहज है , स्वाभाविक है पर गुह , एक भील और वसिष्ठ जैसे मंत्रदृष्टा का मिलन सच में एक क्रान्ति है । राम राज्य की आधारशिला है । Shree Ram ki Kahani in Hindi

 

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here