दोस्तों इन्सान हो या फिर जानवर हर किसी की एक जाति या वंश होता है जिसमे वे जन्म लेते, पलते-बढ़ते है और आगे चलकर अपने वंश को चलाते है। कुछ इसी के आधार पर हमारी आज की कहानी भी है जिसका शीर्षक है Sherni ka Bachcha Gidad-जब गीदड़ बना शेरनी का बच्चा कुल और वंश पर आधारित हमारी आज की कहानी एक शेर और शेरनी और उन्हें जंगल में मिले एक गीदड़ के बच्चे से जुडी हुई है ।
कहानी कुछ इस प्रकार है कि एक शेर और शेरनी को एक गीदड़ का छोटा सा बच्चा मिलता है वह दोनों दया से भर जाते है और उसे भी अपने बच्चो की ही तरह पालते है लेकिन कहते है कि गीदड़ तो गीदड़ ही होता है उसके वंश और कुल का प्रभाव उसमे से कहाँ चला जायेगा, तो आखिर ऐसा क्या होता है कि वे गीदड़ को अपने से दूर कर देते है चलिए कहानी में आगे जानते है ।
Sherni ka Bachcha Gidad – जब गीदड़ बना शेरनी का बच्चा
किसी वन में एक शेर और शेरनी का जोड़ा रहता था। शेर पशुओं को मार-मार कर अपना और अपने परिवार का पेट पालता था । शेर एक दिन बिना कोई पशु मारे गुफा में लौटा। उसे उस दिन सारा समय घूमने पर भी कोई पशु न मिला। उसे चिन्ता लग रही थी कि आज बच्चे भूखे ही सोयेंगे । शेर के दो छोटे बच्चे थे । यह सोच वह चिंता में पड़ गया। Sherni ka Bachcha Gidad
वह गुफा के द्वार से ही लौट पड़ा। अभी वह थोड़ी ही दूर चला होगा कि उसे एक गीदड़ का बच्च दिखाई दिया। शेर को दया आ गई। वह उसे जीवित ही गुफा में ले आया। शेर ने शेरनी से कहा, त” तू इसे खा कर अपना पेट भर ले । कल मैं बहुत सारा शिकार ले आऊँगा ।
शेरनी समझदार थी शेरनी ने शेर से कहा, “स्वामी जब आपने इस बालक समझ कर नहीं मारा तो मैं भी इसे नहीं मारूंगी। मैं इसे अपना तीसरा बेटा समझकर पाल लूँगी।”
इस प्रकार गीदड़ का बच्चा भी शेरनी का दूध पी-पी कर बड़ा हो गया। तीनों बच्चे साथ-साथ खाते, खेलते और शरारतें करते । शेर और शेरनी दोनों तीनों बच्चों को प्यार देते और उनकी रक्षा करते थे ।
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धीरे-धीरे तीनों बड़े होते गए । उनमें अपने अपने जातिगत गुण भी स्वतः प्रगट होने लगे। शेर के बच्चों में शेरों के ओर गीदड़ के बच्चे में गीदड़ो के गुण विकसित होने लगे ।
अब शेर और शेरनी के शिकार की खोज में निकल जाने के बाद यह तीनों बच्चे भी बाहर आसपास निकल कर घूमने लगे। एक दिन इन्होंने दूर से मस्त हाथी को जाते हुए देखा। शेर के बच्चों में हाथी को देख कर उत्साह भर गया । वे गुर्राए और हाथी पर झपटने की चेष्टा करने लगे। Sherni ka Bachcha Gidad
गीदड़ का बच्चा बड़ा था। उसने दोनों शेर बच्चों को मना किया, रोका और कहा, “यह हाथी हमारा कुल शत्रु है। यह बड़ा ताकतवर है । हमें इससे बचकर दूर ही रहना अच्छा है।”
इतना कह कर वह डर कर गुफा की ओर भागा। शेर के बच्चे भी मन मारकर, निराश से होकर उसके पीछे गुफा में आ गए। गुफा में पहुँच कर दोनों शेर बच्चों ने गीदड़ के बच्चे की शिकायत शाम को जंगल से लौटने पर माँ से की ।
गीदड़ का बच्चा भी लाल लाल आँखें कर फड़फड़ा कर शेर के बच्चों की हरकतें बताने लगा । वह दोनों शेर बच्चों को बुरा भला कहता रहा । उसे उनकी हरकतें तनिक भी अच्छी न लगीं। वह डरा हुआ सा दिखाई दे रहा था।
शेर और शेरनी दोनों उन तीनों की बातें सुन कर चिंता में पड़ गए। उन्होंने परस्पर कुछ सोच-विचार किया और निर्णय भी कर लिया । शेरनी ने अकेले में गीदड़ के बच्चे को बुलाकर कहा, “बेटा, तू बड़ा है। तुझे भाईयों को इस प्रकार गुस्से में नहीं बोलना चाहिए। उन की बातों और हरकतों पर भी तुझे ध्यान नहीं देना चाहिए ।”
पर गीदड़ का बच्चा समझाने पर भी नहीं माना। वह बराबर क्रोध में अनाप-शनाप कहता ही रहा। उसने शेरनी से कहा, “मैं बड़ा हूँ । मुझमें समझदारी और जानकारी भी उन से अधिक है। मैं बहादुरी मैं भी उनसे अधिक हूँ फिर मैं चुप क्यों रहूँ।
आप उन्हें क्यों नहीं रोकतीं। आज यदि में न होता तो हाथी उन दोनों को जीवित नहीं छोड़ता । इस पर भी वे तुम्हारे सामने मेरी मजाक उड़ा रहे थे । आपने उन से कुछ नहीं कहा । उन दोनों पर बड़ा गुस्सा आ रहा है। आप उन्हें समझा दें नहीं तो इसका नतीजा बुरा होगा । “
इतना कह गीदड़ का बच्चा क्रोध में भभक उठा। वह बराबर उल्टा-सीधा बके ही जा रहा था। यह देख शेरनी हँसने लगी, शेरनी ने उससे कहा, “बेटा, देख तू बड़ा है । मेरा कहना मान और चुप हो जा । Sherni ka Bachcha Gidad
यह ठीक है कि तू सुन्दर है, बलवान है, बड़ा है और समझदार भी है। पर जिस वंश और जाति में तू जन्मा है, उसमें हाथियों का शिकार नहीं किया जाता । अब समय आ गया है । मैं तुझे तेरे बारे में सब कुछ सच-सच बता देती हूँ।
गीदड़ का बच्चा यह सुन चुप हो गया और कहने लगा, “माँ, आज तू बता कि मैं कौन हूँ ? किस वंश का हूँ ?”
शेरनी बोली, “ले तो सुन, तू सच में गीदड़ का बच्चा है । मेरा नहीं । मैंने दया के वश तुझे पाला अवश्य है । तूने मेरा दूध भी पिया है ।
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पर कुल का प्रभाव कभी नहीं जाता । अत: अच्छा यही है कि अब तू अपने कुल में जाकर मिल जाए। अन्यथा मेरे बच्चे मेरे लाख मना करने और बचाने पर भी किसी दिन चीर डालेंगे। वे शेर के बच्चे हैं। हाथियों को मारना और उनका शिकार करना उनका जन्म जात स्वभाव है ।”
गीदड़ का बच्चा यह सब सुनकर भयभीत हो उठा । शेरनी ने उसे गुफा के बाहर कर दिया। रात्रि में गीदड़ बोल रहे थे। वह भी उन्हें बोलते देखकर उनकी ही बोली बोलने लगा और अपनी जाति के लोगों में जाकर मिल गया। किसी ने सच ही तो कहा है- “गीदड़, गीदड़ ही रहता है।” वह शेर नहीं हो सकता।
शिक्षा: दोस्तों Sherni ka Bachcha Gidad – जब गीदड़ बना शेरनी का बच्चा कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती है कि इन्सान हो या जानवर अपने वंश और कुल का असर उसमे जरुर रहता है वह दुनिया में कहीं भी रहे लेकिन वह अपने अनुवांशिकी आदतों को भुला नहीं सकता है।