दोस्तों आज की हमारी कहानी है एक सेठ और सेठानी की, कहानी के अनुसार सेठ बहुत ही कंजूस प्रवृति का व्यक्ति होता है Seth or Sethani ki Kahani जिस कारण वह कुछ भी फालतू खर्च करने से हमेशा बचता है लेकिन एक बार सेठानी कुछ ऐसा करती है जिसके कारण सेठ को अपनी गलती का एहसास होता है और वह सुधर जाता है।
तो आखिर ऐसा क्या होता है कि सेठ अपनी कंजूसी छोड़ देता है और सुधर जाता है तो आइये कहानी में आगे बढ़ते है और जानते है कि किस कारण सेठ को अपनी गलती का एहसास होता है और वह सुधर जाता है। Seth or Sethani ki Kahani
Seth or Sethani ki Kahani -एक कंजूस सेठ की कहानी
एक सेठानी जो खाने-पीने की बहुत शौकीन थी, जबकि सेठ स्वयं तो खाने-पीने में कंजूसी किया करता था बल्कि सेठानी को भी बार-बार ज्यादा खाते रहने पर टोक दिया करता था। सेठ हमेशा सही सोचा करते सेठानी खाने-पीने पर बिना वजह पैसे खर्च करती रहती है। Seth or Sethani ki Kahani
सेठ जी की इस आदत से परेशान होकर सेठानी सेठ के सामने कम खाती जिससे वह भूखी रह जाती थी। जिस दिन सेठ कहीं बाहर काम से चला जाता, तो वह देसी घी में स्वादिष्ट पकवान बनाकर खाती थी। सेठ जी समझ न पाते कि इतना कम खाने के बावजूद सेठानी क्यों मोटी होती जा रही हैं।
एक दिन सेठ जी बोले- सेठानी तुम तो बहुत सीमित खाना खाती हो फिर भी मोटी होती जा रही हो आखिर इसका क्या राज है?
सेठ की बात सुनकर सेठानी बोली- “मैं क्या जानू? मैं तो आपके सामने ही खाती हूँ और वह भी थोड़ा-सा।
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” सेठ जी चुप रहें। सेठ जी को सेठानी की बात से संतोष नहीं हुआ, वह सारी रात यही सोचते रहे कि ज़रूर सेठानी मुझसे झूठ बोल रही है। उन्होंने एक योजना बनाई। Seth or Sethani ki Kahani
अगली सुबह वह सेठानी से बोले, “मुझे बाहर कुछ जरूरी काम के लिए जाना पड़ रहा है तीन-चार दिन लग जाएंगे। तुम मेरे लिए रास्ते के लिए खाने-पीने का प्रबंध कर देना ।
“सेठानी खुश हो गई और मन ही मन विचार करने लगी कि वह अब आराम से अपना मनपसंद खाना बना बनाकर खाएगी। उसने जल्दी-जल्दी सेठ के बाहर जाने की सारी तैयारी कर दी।
Seth or Sethani ki Kahani सेठ घर से चला गया और वह अपने प्रिय मित्र ‘राघव ‘ के घर ठहर गया।
सेठ जी ने अपनी योजना में राघव को भी शामिल कर लिया। शाम को जब सेठानी कुछ सामान लेने बाजार गई, उसी समय सेठ चुपचाप आकर घर की एक कोठरी में जाकर छिप गया।
सेठानी जब घर वापस आई तो उसकी पकवान खाने की इच्छा हुई। अकेले अकेले खाने में मजा नहीं आएगा, वह पड़ोस में जाकर अपनी एक सहेली को बुला लाई सहेली का नाम था- दुलारी। सेठानी व दुलारी ने मिलकर बहुत स्वादिष्ट खाना बनाया। खाना खाकर दोनों सो गई।
अभी कुछ घंटे ही बीते थे, सेठानी ने दुलारी से पूछा, “अभी कितनी रात बीत गई? ”
दुलारी बोली “अभी तो आधी रात भी नहीं बीती सेठानी। Seth or Sethani ki Kahani
सेठानी बोली, “मुझे तो फिर से भूख लग आई है। रसोई में बूंदी के लड्डू बने रखे हैं, जरा उन्हें ले आओ।”
वह लड्डू ले आई। दोनों ने पेट भरकर लड्डू खाए ।
सेठ जी जो कि अब तक कोठरी से चुपचाप बैठे देख रहे थे। मन ही मन अपने गुस्से को किसी तरह काबू कर रहे थे, फिर भी वह शांत बैठे थे। रात के दो ढाई बजे करीब सेठानी फिर जागी और दुलारी से बोली, “दुलारी! ओ दुलारी!”
दुलारी ने जो थोड़ी नींद में थी जवाब दिया, क्या बात है सेठानी फिर भूख लग आई।
सेठानी ने कहा, “तुम रसोई घर से मट्ठी लाओ दोनों आराम से खाएंगे।” Seth or Sethani ki Kahani
इस बात पर सेठ खीझते हुए बड़बड़ाने लगा, “अरे, यह मोटी तो बहुत खाती है।”
दुलारी मट्ठी ले आई और दोनों ने शौक से खाई । मट्ठियाँ खाकर दोनों फिर सो गई।
कुछ समय बाद सेठानी फिर उठी और बोली, “दुलारी! ओ दुलारी! मुझे फिर से भूख लग रही है। चलो गरम-गरम हलवा बनाकर खाते हैं।” दुलारी भी कम चटोरी न थी। दोनों ने मिलकर बहुत सारा घी डालकर काजू, बादाम, किशमिश वाला स्वादिष्ट हलवा बनाया और दोनों ने जी भरकर खाया और पुनः सो गई। सेठ जी का गुस्सा बढ़ता जा रहा था।”
Seth or Sethani ki Kahani लगभग दो घंटे बाद सेठानी फिर उठी और बोली, “दुसारी दुलारी।” मुझे भूख लगी है। थोड़े से फल काटकर चाट बना ला। दोनों ने मिलकर चटकारे लेते हुए चाट खाई व पुनः सो गये, सेठ जी मन ही मन कलप रहे थे जैसे उनकी सारी पूंजी लुट गई, जो बस विचार कर रहे थे कि जल्दी सुबह हो तो फिर सेठानी को बताता हूँ।
सुबह होते ही दुलारी ने कहा, “वाह! सेठानी पकवान खाकर, आनंद आ गया और वह अपने घर चली गई। सेठानी बाहर टहलने चली गई। सेठ जी चुपचाप से निकलकर अपने मित्र राघव के घर चला गया तथा अपना सामान लेकर घर वापस आ गया । ”
सेठ जी को देखकर सेठानी सकपका गई, उसके मुँह से कुछ नहीं निकला। वह रसोई से पानी का गिलास लेकर सेठ जी को देते हुए बोली, “आप तो तीन-चार दिनों के लिए गए थे। फिर इतनी जल्दी कैसे लौट आए ?
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” सेठ जी ने उखड़ते हुए बोला, “मुझे सब पता है कि मेरे पीछे कितना खाती हो । Seth or Sethani ki Kahani
” सेठानी ने हिम्मत करते हुए बोला, “सेठ जी! ऐसी कंजूसी भी किस काम की कि अपनी इच्छा को पूरी करने के लिए झूठ का सहारा लेना पड़े।
” सेठ जी को अहसास हुआ। वह बोले, “तुमने सिर्फ़ मेरे कंजूस होने के कारण ऐसा किया है, तो ठीक है आज से तुम अपनी मनपसंद का जितना खाना चाहो खा सकती हो, अब में किसी भी तरह की कंजूसी नहीं करूँगा और न ही तुम्हें झूठ बोलने की जरूरत पड़ेगी।
पर इतना याद रखना हर चीज़ की अति बुरी होती है। सेठानी ने हँसकर कहा, “जरूर में हमेशा याद रखूंगी” और कुछ इस तरह सेठ ने अपनी कंजूसी छोड़ दी और दोनों लोग ख़ुशी ख़ुशी रहने लगे। Seth or Sethani ki Kahani
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