Samp Aur Mendhak ki Dosti – सांप और मेंढक की दोस्ती – Panchtantra Story

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Samp Aur Mendhak ki Dosti  - Panchtantra Story
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कैसे हो दोस्तों ? आशा करता हूँ कि आप सब लोग बहुत अच्छे होंगे| दोस्तों आपने अक्सर ही देखा होगा जैसे कभी कभी अगर घर में या फिर आपस में कुछ मतभेद हो जाता है तो हमारे उस आपसी मतभेद का फायदा सदा ही तीसरा व्यक्ति उठाता है और अपना लाभ करता है कुछ ऐसी ही आज की हमारी कहानी है जिसमे Samp Aur Mendhak ki Dosti – Panchtantra Story  कुछ मेंढक और उनके राजा के बीच मतभेद हो जाता है जिसका फ़ायदा सांप उठाता है और एक एक कर सभी मेंढक को खा  जाता है तो चलिए विस्तार से जानते है पूरी कहानी को :-

Samp Aur Mendhak ki Dosti – सांप और मेंढक की दोस्ती – Panchtantra Story

एक राज्य में एक पुराना गांव था, उसमें नदी के पास एक बहुत पुराना कुआं था जिसमें अनेक मेंढक रहते थे। मेंढको का एक राजा था,वह भी सभी मेंढको के साथ उसी कुएं में काफी समय से रहते था।

एक बार राजा मेंढक का अपने मंत्री के साथ कुछ बातों पर मतभेद हो गया। नौबत यहां तक आ पहुंची कि मंत्री ने विद्रोह कर दिया और मेंढको के राजा को अपना देश छोड़कर जाना पड़ा। जाते जाते मेंढको के राजा ने को धमकी दी कि मैं कसम खाता हूं कि मैं अपने अपमान का बदला अवश्य लूंगा और यह कहकर वह वहां से चला गया|

मंत्री ने उसे रोकने की कोशिश नहीं की बल्कि उल्टा उससे यह कहा जाओ तुम्हें मालूम हो जाएगा कि अपना घर छोड़कर जाने का क्या परिणाम होता है धक्के खाओगे तो पता चल जाएगा। Samp Aur Mendhak ki Dosti

मेढ़क के राजा ने कहा-“तुम हो स्वार्थी हो,तुम्हें एक दिन अवश्य इसकी सजा मिलेगी। वह अनाप-शनाप बोलता हुआ वहां से चला गया।”

वहां से निकल कर उसे अपने एक मित्र नागराज की याद आई वह अपने परिवार को एक अन्य कुएं में ठहरा कर अपने मित्र नागराज के पास गया जो कि नदी के उस पार एक पेड़ के नीचे बिल में रहता था।  मेंढक ने उसके पास जाकर आवाज लगाई। “नागराज तुम कहां हो?”

बिल के अंदर से आवाज आई ” कौन है?”

मेंढक ने उत्तर दिया-” मैं तुम्हारा पुराना मित्र मेंढक हूं।”  मेंढक की बात सुनकर सांप बोला-अच्छा अच्छा याद आ गया आ रहा हूं। 

नागराज बिल से बाहर निकल आया और अपने मित्र मेंढक को गले लगाते हुए पूछा-” कहो मित्र क्या हाल हैं कैसे हो और आज तुम्हें मेरी याद कैसे आ गई?”

मैं तुम्हारे पास कुछ दिनों के लिए रहने आया हूं “मेंढक बोला”।

Samp Aur Mendhak ki Dosti सांप बोला-” यह तो खुशी की बात है अवश्य रहो किंतु,नागराज कुछ कहते-कहते रुक गया।” उसके इस तरह चुप रहने से मेंढक ने नागराज से पूछा-” क्या हुआ नागराज भाई क्या मुझे यहां रहने में संकोच कर रहे हो?”

नागराज ने मेंढक से कहा-” नहीं भाई ऐसी कोई बात नहीं है लेकिन मेरे मन में यह प्रश्न आ रहा है कि आखिर तुम्हें घर छोड़ने की नौबत क्यों आन पड़ी तुम अपना राज्य छोड़कर यहां क्यों आए?”

इसके बाद मेंढक ने सारी कहानी नागराज को सुनाई। मेंढक ने कहा-” नागराज!  मेरे मंत्री ने अपने बाकी मंत्रियों के साथ मिलकर षड्यंत्र किया है और पूरे कुएं पर कब्जा कर लिया है तथा स्वयं राजा बन बैठा है और मुझे विवश होकर तुम्हारी शरण में आना पड़ा क्या तुम मुझे शरण नहीं दोगे?”

नागराज ने मेंढक से कहा-” मित्र क्या तुम अपना राज्य वापस लेना चाहते हो?”  मेंढक ने हां में सर हिला दिया।

Panchtantra Story  इसके बाद मेंढक नागराज के साथ चल कर उस कुएं के पास आया जिसमें  राजा मेंढक पहले रहता था। कुएं के पास आकर नागराज ने सभी मेंढको को बुलाया और बुलाकर खूब डांटा इसके बाद जो मंत्री विद्रोह कर राजा बन बैठा था नागराज उसे पकड कर खा गया। 

यह हाल देखकर सभी मेंढक घबरा गए और उस पुराने मेंढ़क राजा को उसका राज्य वापस कर दिया और उससे क्षमा मांगी।

लेकिन अब नागराज ने उस कुएं के पास अपना एक नया बिल बनाया और वहीं पर रहने लगा और जब मन करता था तब कुएं में जाकर अपनी पसंद के मेंढक को खा जाता था। धीरे-धीरे वह एक-एक कर सभी मेंढको को अपना भोजन बनाकर बड़ी मौज से रह रहा था। इस प्रकार लगभग मेंढक समाप्त होने की कगार पर आ गए थे,|

बचे हुए मेंढक यह खबर लेकर अपने राजा के पास गए और जाकर कहा-” महाराज!  आपके मित्र नागराज ने लगभग कुएं के आधे से ज्यादा मेंढको को अपना शिकार बना चुका है इस प्रकार हम सभी एक दिन मारे जाएंगे। Samp Aur Mendhak ki Dosti

यह सुनकर मेंढक राजा ने  नागराज के पास जाकर कहा- ” मित्र नागराज! तुमने मेरी जनता लगभग समाप्त ही कर दी है,अब आप अपने पुराने निवास स्थान पर चले जाएं ।

किंतु नागराज ने यह सुनकर मेंढक राजा को बहुत डांटा और कहां-” मैंने तुम्हारा राज्य तुम्हें वापस  दिल आया है और तुम मुझे यहां से जाने के लिए कह रहे हो।”

खबरदार ! अब मैं यहां से कभी नहीं जाऊंगा और आज से मेरे भोजन के लिए मेंढक रोजाना मेरे पास अवश्य पहुंच जाना चाहिए। मेंढक राजा बेचारा मरता क्या न करता।  नागराज के कहे अनुसार रोजाना एक मेंढक उसके पास भेजा जाने लगा।

अंत में जब सभी मेंढक समाप्त हो गए तो मेंढक राजा नागराज के पास पहुंचा और कहा-” नागराज! अब मेरे सिवा कोई भी मेंढक जीवित नहीं बचा है, मैं अकेला जीवित रह कर क्या करूंगा तुम मुझे भी खा लो।  और यह सुनकर नागराज ने मेंढक राजा को भी अपना शिकार बना लिया।

शिक्षा : घर की लड़ाई का लाभ सदा तीसरा व्यक्ति उठाता है,इसलिए सदा मिल जुलकर रहना चाहिए। Panchtantra Story 

 

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