Raja or Ghode Ki Kahani – राजा और घोड़े की कहानी

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Raja or Ghode Ki Kahani
Raja or Ghode Ki Kahani

दोस्तों कहते है संस्कार से बड़ी कोई मूल्यवान वस्तु नही होती है, यह सबसे बड़ा धन है जो हमें हमारे माता-पिता और बड़े लोगो से मिलते हैआज की हमारी कहानी भी संस्कारो पर आधारित है जिसका शीर्षक है Raja or Ghode Ki Kahani – राजा और घोड़े की कहानी

कहानी कुछ इस प्रकार है कि एक राजा के पास एक घोड़ी होती है और उस घोड़ी की एक बेटी होती है जिसे माँ घोड़ी हमेशा अच्छे अच्छे संस्कार देती है, राजा के बारे में अच्छी अच्छी बातें बताती है लेकिन फिर भी ऐसा क्या हो जाता है कि बेटी घोड़ी को राजा से नफरत हो जाती है और वह राजा को नुकसान पहुँचाने के जतन करने लगती है तो चलिए कहानी में आगे बढ़ते है और जानते है असली वजह

Raja or Ghode Ki Kahani – राजा और घोड़े की कहानी

प्राचीन काल की बात है तब पशु पक्षी मनुष्यों की तरह बातें करते और बोलते थे। एक राजा के यहाँ एक घोड़ी थी, बड़ी सुन्दर, तेज दौड़ने वाली और स्वामिभक्त थी उसके एक बछेड़ी (घोड़ी की बेटी) थी।

वह भी अपनी माँ की तरह | सब प्रकार से स्वस्थ और बलिष्ठ थी। पर उसकी एक आँख खराब थी। उसे सब कानी कह कर चिढ़ाते थे। एक दिन उसने अपनी माँ से कहा, “माँ, तुम्हारी ही तरह मैं सुन्दर, तन्दुरुस्त और बलवान हूँ, पर क्या कारण है कि मेरी एक आँख फूटी है ? मैं कानी क्यों हुई ?” Raja or Ghode Ki Kahani

पहले तो घोड़ी ने बात बदलने की टालने की बहुत कोशिश की पर उसकी हठ देख कर उसने बताया, बेटी, जब तू मेरे पेट में पल रही थी,एक दिन राजा मुझे लेकर शिकार को गया था। मैं एक हिरन के पीछे दौड़ी, राजा मेरी पीठ पर बैठा था।

हिरन तेजी से पलटा और तेजी से भागा पर मुझे पलटने में थोड़ी देर लग गई। राजा को इस बात पर गुस्सा आ गया । उसने जोर से मुझे एक चाबुक मार दिया । उस चाबुक की मार की चोट के कारण तेरी एक आँख फूट गई । इस कारण तू कानी पैदा हुई । “

वह बोली, “माँ, यह तो राजा ने बहुत बुरा किया। यह तो सरासर अन्याय है । मैं इस अन्याय का बदला अवश्य लूँगी ।”

बच्ची की बात सुन कर माँ ने कहा, “बेटी, ऐसी बात नहीं है । हमारा राजा, हमारा मालिक है । वह बहुत अच्छा आदमी है। वह हमारी सब प्रकार से देख भाल करता है। खूब अच्छा-अच्छा खाने को भी देता है ।

हमारी कई पीढ़ियाँ यहीं, इसी राजा के परिवार में पली, बढ़ी और मरी हैं। राजा ने हमारे वंश पर बड़े उपकार किये हैं। हमें उसका अहित नहीं सोचना चाहिए ।”

लेकिन बछेड़ी न मानी। वह अपनी हठ पर अड़ी रही। तब माँ ने उसे समझाया और कहा, “बेटी, शिकार में ऐसा ही होता है । राजा को यह पता भी न था कि तू मेरे पेट में है। अन्यथा वह मुझे शिकार में ले ही न जाता । हम राजा के ऋणी हैं ।

हम राजा के उपकारों को कभी नहीं भूल सकते । हम कई जन्मों में भी उसका ऋण नहीं चुका सकते हमें कृतघ्न नहीं होना चाहिए। ऐसा दयालु और उदार राजा तो खोजने पर भी कहीं नहीं मिलेगा । तू बदले की बात अपने मन से निकाल दे। ऐसा सोचना भी पाप है। ऐसा परोपकारी राजा बड़े भाग्य से ही प्राप्त होता है। हमें जन्म भर उसकी सेवा करनी चाहिए ।”

Raja or Ghode Ki Kahani लेकिन उस नन्हीं घोड़ी ने निश्चय कर लिया, “मैं इस राजा से अपने अपमान का बदला अवश्य लूँगी।” माँ सदा उठते-बैठते, खाते-पीते खेलते और सोते समय बच्ची के कानों में राजा के उपकार की गाथा सुनाती और कहती, “बेटी, राजा को हानि न पहुँचाना वरना हमारा उद्धार नहीं होगा । इस राजा के बड़े उपकार हमारे ऊपर हैं।”

धीरे धीरे कई वर्ष बीत गए । घोड़ी अब बूढ़ी हो चली थी। पर उसकी बच्ची अब जवान घोड़ी बन गई थी । राजा के पड़ोसी राज्यों के दूसरे राजा ने राजा के राज्य पर चढ़ाई कर दी। राजा युद्ध के लिए इस नई घोड़ी पर जाने को ही तैयार हुआ ।

चलते समय बूढ़ी घोड़ी माँ ने समझाकर कहा, “बेटी, आज तेरी परीक्षा की घड़ी है। मैंने तुझे आज के दिन के लिए ही जन्म दिया था । तू राजा की सब प्रकार से रक्षा करना, उसे विजयी बनाकर ही लाना ।” लेकिन बेटी घोड़ी ने कोई उत्तर न दिया, वह चुप रही।

नई घोड़ी ने अपना बदला लेने का यही सबसे अच्छा अवसर समझा। उसने मन ही मन कहा, ” आज मैं बिना बदला लिए नहीं रहेंगी। मैं राजा को उसके किए का दण्ड अवश्य दूँगी । राजा नई घोड़ी पर बैठ कर युद्ध के लिए निकल गया ।

दोनों ओर से दोनों राज्यों की सेनाएँ एक दूसरे से भिड़ गईं। दोनों के बीच बड़ा भयंकर युद्ध हुआ । बड़ी मार काट मची थी। Raja or Ghode Ki Kahani

कई बार घोड़ी ने मन ही मन सोचा, अच्छा हो अगर राजा गिर कर मर जाए। उसने कई बार राजा को गिराने की सोची भी पर हर बार उसके कानों में उसकी माँ के कही हुई बातें गूंज उठती, “बेटी, हमारे वंश पर राजा के अनेक उपकार हैं । उसे विजयी बना कर ही लाना । आज तेरी परीक्षा का दिन है। मैंने तुझे आज के दिन के लिए ही जन्म दिया है।”

वह अपना बदला लेने की बात भूल कर अपने स्वामिभक्त होने का परिचय देती रही। घोड़ी ने बड़े साहस, अद्भुत पराक्रम और कुशलता को दिखाया। वह सच में राजा को विजयी बना कर बड़ी शान और अभिमान से लौटी ।

यद्यपि घोड़ी को कई जगह चोटें आईं पर उसने राजा का बाल भी बाँका नहीं होने दिया । राजा ने युद्ध से आते ही घोड़ी के घावो के उपचार की व्यवस्था की और स्वयं उसकी देख-रेख भी की।

माँ, आज प्रसन्न थी। उसने घोड़ी (बच्ची) के शरीर पर तीरों और भालों के घाव देखकर कहा, “तू तो राजा से बदला लेने वाली थी, पर तू तो आज उसे सुरक्षित और विजयी बना कर लौटा लाई है। सचमुच तूने वंश की लाज रख ली ।”

बच्ची, जवान घोड़ी ने कहा, “माँ, जब भी मैंने बदला लेने को सोची, तेरे कहे शब्द मेरे कानों में गूंजने लगते। माँ, मुझे क्षमा कर और आशीर्वाद दे कि मैं कर्तव्य न भूलूँ ।”  यह सच है संस्कार ऐसे ही होते हैं। हमे संस्कारों के महत्व को समझना चाहिए।

शिक्षा:- आज की इस Raja or Ghode Ki Kahani – राजा और घोड़े की कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती है कि हमे सदा ही अपने संस्कारो का मान रखना चाहिए और कभी भी अपने कर्तव्यो को नही भूलना चाहिए

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