दोस्तों कैसे है आप सब, आज की कहानी कुछ अलग लेकिन दिलचस्प है। आज की हमारी कहानी का शीर्षक है “Lalach Buri Bala Hai – लालच बुरी बला है एक प्रेरणादायक कहानी” है। वैसे तो आपने लालच से जुडी कई किस्से-कहानियां सुनी और पढ़ी होगी लेकिन आज की हमारी यह कहानी कुछ अलग है ।
आज कल हर व्यक्ति कम समय में अधिक धन कमाना चाहता है लेकिन बदले में मेहनत नही करना चाहता। यदि आप सच्चे मन से और कठिन परिश्रम करते है तो आप अपने कार्य में जरुर सफल होते है। लेकिन कई लोग धन के लालच में आकर परिश्रम न कर धनवान बनने का सपना देखते है और अपना ही अहित करते है ।
कुछ ऐसा ही आज की हमारी इस कहानी में होता है कि लालच में आकर कुछ व्यक्ति परी से ऐसा वरदान मांगते है जो उनके लिए ही ठीक नहीं होता लेकिन ऐसा कैसे होता है तो चलिए कहानी में आगे बढ़ते है और जानते है।
Lalach Buri Bala Hai – लालच बुरी बला है एक प्रेरणादायक कहानी
एक समय की बात है किसी गांव में एक दर्जी रहता था, वह बहुत गरीब था। वह मन ही मन सोचता था कि इतनी मेहनत करने पर भी कुछ पैसे नहीं जोड़ पाता हूं। उसने सोचा यह गांव छोड़कर किसी शहर की ओर जाता हूं, हो सकता है कि भगवान कोई चमत्कार कर दें और मैं जल्दी से धनवान बन जाऊं।
वह शहर की ओर जाने वाले मार्ग पर चल पड़ा। दर्जी अभी थोड़ी ही दूर चला था कि उसे रास्ते में एक लकड़हारा मिला जो लकड़ी काट रहा था।
दर्जी ने उससे कहा- ‘वह भी बहुत मेहनत करता था ताकि धन कमा सकूं पर कोई लाभ ना हुआ अब गांव छोड़कर शहर जा रहा हूं कि शायद कोई दैवीय चमत्कार हो जाए। जिससे जल्दी से जल्दी मैं धनवान हो सकूं।’
उसकी यह बातें सुनकर लकड़हारे ने अपनी कुल्हाड़ी वही फेंक दी और दर्जी के साथ चल पड़ा। Lalach Buri Bala Hai
चलते चलते वे दोनों एक कारखाने के पास पहुंचे। वहां बढ़ई लकड़ी के टुकड़े लेकर कुछ नया बनाने का प्रयत्न कर रहा था। दर्जी और लकड़हारे को देखकर और अपनी दुखती कमर को सहलाते हुए सीधा खड़ा हुआ।
लकड़हारे ने कहा “भाई! हम दोनों भी तुम्हारी ही तरह बहुत मेहनत करते थे किंतु कोई लाभ ना हुआ।
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अब हम दोनों ने शहर जाने का फैसला किया है शायद जल्दी धनी बन जाने का कोई रास्ता मिल जाए। बढ़ई ने भी अपने औजार एक और फेंक दिए और बोला मैं भी तुम्हारे साथ शहर चलूंगा।
तीनों मित्र आगे चल पड़े। जब उन्हें भूख लगी तो उन्होंने आग जलाई और खाना पकाया। उसी समय एक बूढ़ी औरत वहां आ पहुँची।
वह सब आपस में बातें करने लगे, जब उस बूढ़ी औरत को पता लगा कि उन्होंने किसी चमत्कार की आशा से अपना घर और काम छोड़ दिया है तो उसने कहा “तुम लोगों ने अपना घर छोड़कर ठीक नहीं किया, यह तुम्हारी मूर्खता है।”
उस बुढ़िया की बातों को नजरअंदाज करते हुए दर्जी ने कहा “यदि भाग्य वश हमें कोई परी मिल जाए और उसके वरदान से हम रातों रात धनवान हो जाए।” तब बुढ़िया बोली “तो समझो मैं बुढ़िया के वेश में एक परी हूं।
बोलो तुम लोगों को क्या वरदान चाहिए?” मैं एक-एक वरदान तुम तीनों को दूंगी देखती हूं तुम उसका लाभ किस प्रकार उठाते हो? Lalach Buri Bala Hai
इतना सुनकर सबसे पहले उसने दर्जी की ओर देखा दर्जी ने अपने काम को ध्यान में रखते हुए कहा “मैं जिस भी वास्तु को खींचू, वह लंबी हो जाए इससे जब भी मैं कपड़े को नाप लूंगा वह बढ़ता ही जाएगा और मैं बहुत सारे कपड़े तैयार कर सकूंगा।
बुढ़िया ने कहा “जाओ ऐसा ही होगा।”
तब उसने लकड़हारे की ओर देखा लकड़हारे ने अपने काम को ध्यान में रखते हुए कहा “मैं जिस चीज पर हाथ मारूं, वह सरलता से टूट जाए।”
बुढ़िया हंसते हुए बोली “जाओ तुम्हारे साथ भी ऐसा ही होगा।”
अब उसने बढ़ई की ओर देखा बढ़ई ने भी अपने काम को ध्यान में रखा और कहा “मैं जिस वस्तु को एक साथ रखूं। वह आपस में मजबूती के साथ जुड़ जाए।”
बूढ़ी औरत ने कहा “ऐसा ही होगा। तीनो को वरदान देने के बाद वह उठ खड़ी हुई और वहां से चल दी।”
दर्जी बोला “अब हमें देखना चाहिए कि हमें जो वरदान मिला है वह पूरा भी होता है या नहीं।” उसने अपने थैले में से एक कपड़े का टुकड़ा निकाला और उसे खींचने लगा, उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा। जब उसने देखा कि कपड़ा लंबाई में बढ़ता ही जा रहा था।
उसके बाद लकड़हारे ने एक पेड़ के तने पर हाथ रखा तो उसके दो टुकड़े हो गए। यह देख बढई ने अपने वरदान की पुष्टि करने के लिए उसने उस टूटे भाग को उठाया और आपस में जोड़ दिया पेड़ के दोनों भाग मजबूती से जुड़ गए।
वे तीनों खुशी के मारे पागल हो गए। आग के चारों और नाचने लगे, नाचते-नाचते दर्जी का हाथ अपनी नाक पर जा पहुंचा और वह अपनी नाक खींच बैठा। उसके आश्चर्य की सीमा न रही कि उसकी नाक खींचकर लंबी हो गई थी।
वह जमीन पर बैठ कर रोने लगा हाय! अब क्या होगा मैंने तो कपड़े को ध्यान में रखकर वरदान मांगा था। उसकी लंबी नाक को देखकर लकड़हारा ठहाका लगाकर हंस पड़ा जोर-जोर से हंसते हुए जैसे ही उसने अपने पैर पर हाथ मारा। उसका पैर धम्म से जमीन पर गिर पड़ा। Lalach Buri Bala Hai
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दोनों दोस्तों की ऐसी दुर्गति देखकर बढ़ई अपना आपा खो बैठा। वह जल्दी जल्दी अपना जूता पहनने लगा कि मैं अभी उस बुढ़िया को पकड़ कर लाता हूं।
पर अरे यह क्या? बढई का पैर अपने जूते से चिपक गया था वह एक भी कदम आगे ना बढ़ा सका। अब तीनो मिलकर रोने और गिडगिडाने लगे और अपनी गलती का एह्साह कर माफ़ी मांगने लगे।
तभी वह बुढ़िया वहां पर आ गई वह बुढ़िया के रूप में एक परी थी। वह परी उन तीनो का देख उन्हें बोली “देखो वरदान मांगने से पहले बहुत कुछ सोचना समझना चाहिए।”
उसने उन तीनों को पहले की अवस्था में लाने से पहले उनसे पूछा “अब बोलो मैं अपना वरदान वापस ले लूं ताकि तुम फिर से पहले की तरह हो सको।”
तीनों मित्र गिडगिडाने लगे हां हां! जरूर जरूर!
परी ने अपना वरदान वापस ले लिया तीनों मित्रों ने कहा “कि अब वे इधर-उधर धन के लालच में नहीं भटकेंगे और अपने काम में मन लगाएंगे।” वे तीनों अपने अपने घरों को लौट गए और परी से वादा किया कि वह लोग अब अपनी मेहनत से धन कमाएंगे।
आज की इस कहानी “Lalach Buri Bala Hai – लालच बुरी बला है एक प्रेरणादायक कहानी” से हमे यह शिक्षा मिलती है कि हमे सदा ही सच्ची लगन और परिश्रम से अपना कार्य करना चाहिए और कभी लालच नहीं करना चाहिए।
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