Khargosh or Mendak ki Kahani – खरगोश और मेंढक की रोचक कहानी

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Khargosh or Mendak ki Kahani
Khargosh or Mendak ki Kahani

दोस्तों अक्सर ही जब हमे दुःख मिलता है तो हम अपने जीवन के बारे में गलत बात करने लग जाते है जैसे मेरे साथ ही बुरा क्यों होता है Khargosh or Mendak ki Kahani या फिर भगवान ने मेरे ही जीवन में सारी परेशानी लिख दी है वगैरह वगैरह लेकिन हम यह भूल जाते है कि एक दुनिया में हमसे भी ज्यादा दुखी और दरिद्र लोग है। कुछ ऐसा ही आज की कहानी में है, कहानी में कुछ खरगोश आत्महत्या करने के विचार से जाते है लेकिन फिर क्यों वह आत्महत्या नही करते चलिए कहानी से जानते है। 

Khargosh or Mendak ki Kahani – खरगोश और मेंढक की रोचक कहानी

एक बार की बात है कुछ खरगोश गरमी के दिनों में झरबेरी की एक सूखी झाड़ी में इकट्ठे हुए। खरगोश किसी विशेष विषय पर आज बात करने वाले थे और सभी खरगोशो को आने का आदेश दिया गया था। Khargosh or Mendak ki Kahani गरमी अपनी चरम सीमा पर थी सूरज मानो धरती पर सबको अपनी आग भरी लपटों से मानो जलाना चाह रहा हो।

खेतों में उन दिनों अन्न न होने से वे सब खरगोश भूखे थे और इन दिनों सुबह और शाम को गाँव से बाहर घूमने वाले लोग के साथ आने वाले कुत्ते भी उन्हें बहुत तंग करते थे। कुत्ते जैसे ही उन खरगोश को देखते थे उनका पीछा करना शुरू कर देते थे जिससे खरगोशो को अपनी जान बचाने के लिए मैंदान की झाड़ियो में छिपना पड़ता था लेकिन गर्मी होने के कारण मैदान की झाड़ियाँ सूख गयी थीं।

कुत्तों के दौड़ने पर खरगोशों को छिपने का स्थान बहुत ही मुश्किल से मिलता था। इन सब दुःखोंसे वे सब खरगोश परेशान हो चुके थे।

एक खरगोश ने कहा- ‘ब्रह्माजी ने हमारी जाति के साथ बड़ा ही अन्याय किया है, एक तो हमको इतना छोटा और दुर्बल बनाया। संकट आने की परिस्थितियों में हम अपना बचाव भी करे तो कैसे? हमें उन्होंने न तो हिरन – जैसे सींग दिये, न बिल्ली – जैसे तेज पंजे।  

अपने शत्रुओं से बचनेका हमारे पास कोई उपाय नहीं। सबके सामने से हमें भागना पड़ता है। सब ओर से सारी विपत्ति हम लोगों के सिर पर ही सृष्टिकर्ता ने डाल दी है। अब हम करे भी तो क्या करे। 

दूसरे खरगोश ने कहा- ‘ मैं तो अब इस दुःख और पीड़ा से भरे जीवन से निराश हो गया हूँ । मैंने तो तालाब में डूबकर मर जाने का निश्चय किया है। 

दुसरे खरगोश की बात सुनकर एक अन्तीय खरगोश बोला- ‘ मैं भी मर जाना चाहता हूँ। अब और दुःख मुझसे नहीं सहा जाता। मैं अभी तालाब में कूद कर अपने प्राण त्याग देता हूँ इस दुखी जीवन से मुक्ति तो मिलेगी यूँ रोज रोज मरना तो नहीं पड़ेगा।

Khargosh or Mendak ki Kahani  उस खरगोश की बात सुनकर सभी खरगोश बोले हम सब तुम्हारे साथ चलते हैं। हम सब साथ रहे है तो साथ ही मरेंगे, सब खरगोश प्राण त्यागने की बात सुनकर एक ही स्वर में बोल उठे । सब एक साथ तालाब की ओर चल पड़े।

तालाब के पानी से निकलकर बहुत – से मेढक किनारे पर बैठे थे। एकाएक जब खरगोशों के आने की आहट उन्हें मिली तो सभी मेंढक छपाछप पानी में कूद पड़े। मेढकों को डरकर पानी में कूदते देख खरगोश रुक गये। सभी खरगोश मेंढको की इस हरकत से हैरान थे।

एक खरगोश बोला- ‘ भाइयो ! प्राण देने की आवश्यकता नहीं है , आओ लौट चलें । जब ब्रह्मा की सृष्टि में हमसे भी छोटे और हम से भी डरने वाले जीव रहते हैं और जीते हैं, तब हम जीवन से क्यों निराश हों ? ‘

उस खरगोश की बात से सभी खरगोश सहमत थे और उसकी बात सुनकर खरगोशों ने आत्महत्या का विचार छोड़ दिया और लौट गये।

जब तुम पर विपत्ति आये और तुम घबरा उठो तो यह देखो कि संसार में कितने लोग तुमसे भी अधिक दुखी, दरिद्र, रोगी और संकटग्रस्त हैं। पहले उन्तुहें देखो और उन्हें देख कर स्वयं ही यह तय करो कि तुम उनसे कितनी अच्छी दशा में हो। Khargosh or Mendak ki Kahani फिर तुम्हें क्यों घबराना चाहिये। बल्कि तुम्हे तो ईश्वर का धन्यवाद करना चाहिए कि जो जीवन तुम जी रहे हो बहुत से लोगो को उस तरह का जीवन नसीब नही है। 

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