Kauve or Chane ki Kahani – कौवे और चने की कहानी

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Kauve or Chane ki Kahani
Kauve or Chane ki Kahani

कौआ हमारे देश का सबसे पुराना और समझदार पक्षी है। त्रेता युग में रामायण में इसका वर्णन विस्तार से आया है और आज की हमारी कहानी का शीर्षक भी Kauve or Chane ki Kahani – कौवे और चने की कहानी, हमारे देश में जहाँ शूरवीर पुरुषों, स्त्रियों, बालकों की चर्चा होती है, वहीं त्यागियों, सन्तों और धर्मात्माओं का वर्णन भी मिलता है। इसी प्रकार पशु-पक्षियों का वर्णन भी सर्वत्र पढ़ने व सुनने को मिलता है। प्रस्तुत कहानी कौए से ही सम्बन्धित है।

कहानी कुछ इस प्रकार से है कि कौवे के पास एक चना होता है, जिसे जब कौवा खाने चलता है तो वह चना एक टूटी हुई खूँटी में फंस जाता है और खूँटी से चना वापस पाने के लिए कौवा अनेको जतन करता है यहाँ तक कि वो अनेको लोगो से अपने चने को वापस पाने के लिए मदद भी मांगता है तो चलिए कहानी में आगे बढ़ते है और जानते है कौवा, अपने चने को पाने के लिए क्या क्या करता है?

Kauve or Chane ki Kahani – कौवे और चने की कहानी

एक कौआ था। वह कहीं से एक भुना चना अपनी चोंच में उठा लाया । वह उसे खाने एक खूँटी पर बैठा । खूँटी टूटी हुई थी। जैसे हीं कोए ने चना खाने को अपना मुँह खोला, चना उस टूटी खूँटी में फँस गया । कौए ने बड़ी मिन्नत की पर खूँटी ने चना कौए को न दिया ।

मज़बूर होकर कौआ उड़ता हुआ बढ़ई के पास गया और बोला, “बढ़ई तू जल्दी से चल कर खूँटी उखाड़ दे मेरा चना खूँटी में फँस गया है और खूँटी माँगने पर भी उसे नहीं दे रही है।”

बढ़ई ने उसे यह कहकर मना कर दिया कि मेरे पास इतना फालतू समय नहीं है कि मैं तुम्हारे एक चने के लिए खूँटी उखाड़ने को तुम्हारे साथ अपना काम बन्द करके चलूँ । मुझे क्षमा करो, मैं नहीं चल सकता। जाओ, अपना समय नष्ट न करो और काम करो ।

कौआ समझदार तो था ही, पर वह हठी भी था। उसने चना खूँटी से लेने की पक्की हठ कर रक्खी थी। वह उड़कर राजा के पास गया और बोला, “खूँट चना देत नाय, बढ़ई खूँट उखाड़त नाय बताओ मैं क्या करूँ ।” Kauve or Chane ki Kahani

कौए की फरियाद सुनकर राजा ने उससे पूछा, “तू क्या चाहता है? बता मैं क्या करूँ। “कौआ बोला,” आप राजा है। तुरन्त बढ़ई को बुलाकर डाँटिए।” राजा ने कहा, ” एक तुम्हारे छोटे से चने के लिए मैं बढ़ई को बुलाकर नहीं डाँट सकता । तुम जितने चने चाहो यहाँ से ले सकते हो। “कौए ने कहा कि उसे तो वही अपना चना चाहिए । उसे न्याय चाहिए |

कौआ उड़कर रानी के पास गया और बोला, “खूंटा चना देत नाय, बढ़ई खूँट उखाड़त नाय राजा बढ़ई डाँटत नाय बताओ मैं क्या करूँ।”

कौए की फरियाद सुनकर रानी ने कहा, “तू क्या चाहता है बताओ मैं क्या करूँ ?

कौआ बोला, आप राजा से रूठ जाएँ तो मेरा काम बन जायेगा । मुझे मेरा चना वापिस मिल जायेगा ।

रानी ने जवाब दिया, ‘कौए तू समझदार होकर भी कैसी मूर्खता की बात कर रहा है, मैं एक चने के लिए राजा से रूठ जाऊं। यह कभी नहीं हो सकता। तू यहाँ से चला जा ।”

कौआ लगन और हठ का पक्का था। वह बिल्कुल भी हताश नहीं हुआ। वह सीधा चूहे के पास पहुँचा और कहने लगा, “खूँट चना देत नाय, बढ़ई खूँट उखाड़त नाय, राजा बढ़ई डाँटत नाय, रानी राजा रूठत नाय, बताओ मैं क्या करूँ।”

यह सुन चूहा बोला, “कौए, बताओ मैं क्या करूँ । तुम मुझसे क्या चाहते हो ?”

Kauve or Chane ki Kahani कौआ कहने लगा कि तू फौरन जाकर रानी के कपड़े काट, तभी मेरा काम पूरा हो लेगा।

चूहा बोला, “कौए, तू, लगता है पागल हो गया है। एक छोटे से चने के लिए मैं रानी के कीमती वस्त्र नहीं काट सकता । तुम कहीं और जाकर अपना काम देखो। मुझे परेशान मत करो ।”

कौआ उड़कर सीधे बिल्ली के पास पहुँचा और बोला, “खूँट चना देत नाय, बढ़ई खूँट उखाड़त नाय, राजा बढ़ई डाँटत नाय, रानी राजा रूठत नाय, चूहा रानी के कपड़े काटत नाय, बताओ मैं क्या करूँ ?”

“कौए की बात सुन बिल्ली बोली, बताओ मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ।”

कौआ बोला, “तू अभी चल कर चूहे को खा ले, तभी मेरा काम पूरा होगा ।”

बिल्ली ने कहा, ‘कौए, तेरा दिमाग तो ठीक है न । तुझे तो लोग बड़ा समझदार समझते हैं । तू तो पागलों की सी बातें कर रहा है। एक नाचीज़ चने के लिए मैं चूहे के प्राण नहीं ले सकती । जा तू कहीं और जाकर अपनी बात मनवा ले । मुझे माफ़ कर। “

कौआ वहाँ से सीधा कुत्ते के पास गया। कौए को आशा थी कि कुत्ते की बिल्ली से जन्मजात शत्रुता है । लगता है कुत्ता मेरी बात अवश्य मान लेगा । कौए ने कुत्ते से कहा, “खूँट चना देत नाय, बढ़ई खूँट उखाड़त नाय, राजा बढ़ई डाँटत नाय, रानी राजा रूठत नाय, चूहा रानी के कपड़े काटत नाय, बिल्ली चूहे को खात नाय, बताओ मैं क्या करूँ ?”

यह सुन कुत्ते ने कहा, “कौए. वैसे तो बिल्ली मेरी जन्म की बैरी है, पर मैं इतना नीच नहीं हूँ कि केवल एक चने के लिए बिल्ली की जान ले लूँ नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकता। मुझे दुःख है। मुझे क्षमा करो, तुम यह काम किसी और से पूरा करा लो।” Kauve or Chane ki Kahani

कौआ यहाँ से सीधा डण्डे के पास गया । कौए ने हिम्मत नहीं हारी। वह डण्डे के पास पहुँच कर बोला, “खूँट चना देत नाय, बढ़ई खूँट उखाड़त नाय, राजा बढ़ई डाँटत नाय, रानी राजा रूठत नाय, चूहा रानी के कपड़े काटत नाय, बिल्ली चूहा खावत नाय, कुत्ता बिल्ली मारत नाय, बताओ में क्या करूँ ?”

डन्डे ने यह सुन कर कहा, “कौए, मैं निर्दोष कुत्ते को और वह भी एक साधारण से चने के लिए कभी नहीं मार सकता । तुम अपने काम के लिए किसी और को खोज लो।”

यह सुन कर कौआ सोच में पड़ गया कि वह क्या करे ! फौरन उसका ध्यान आग की ओर गया। उसने सोचा आग पवित्र होती है। वह मेरी सहायता करेगी । इसलिए कौआ सीधा आग के पास गया ।

उसने वहाँ पहुँच कर आग से कहा, “खूँट चना देत नाय, बढ़ई खूँट उखाड़त नाय, राजा बढ़ई डाँटत नाय, रानी राजा रूठत नाय, चूहा रानी के कपड़े काटत नाय, बिल्ली चूहा खावत नाय, कुत्ता बिल्ली मारत नाय, डण्डा कुत्ता पीटत नाय, बताओ अब मैं क्या करूँ ? आप मेरी मदद करें । आप डण्डे को जला कर राख कर दें । मेरी आपसे यही बिनती है ।

कौए की पूरी बात सुन कर आग ने कहा, “कौए, मैं विवश हूँ । मैं बिना किसी अपराध के डण्डे को नहीं जला सकती । तुम्हीं बताओ, सोचो क्या मेरा तुम्हारे एक छोटे से चने के दाने के लिए जला डालना अच्छा रहेगा । तुम जा कर कहीं से किसी जगह से दूसरा चना उठा लो। क्या इसी चने से तुम्हारा पेट भरेगा ।

इसके बाद फिर कभी तुम चना खाओगे ही नहीं ऐसा तो होगा नहीं फिर भला तुम मेरा धर्म क्यों नष्ट कराने पर तुले हो । तुम यहाँ से चले जाओ। मैं तुम्हारा काम नहीं कर सकती ।” 

आग के इस रूखे, कठोर शब्दों को सुन कर कौए को क्रोध तो बहुत आया पर बेचारा क्या करता। आग का तो वह कुछ बिगाड़ नहीं सकता था । वह सोचने लगा, अब क्या करूँ और अपने काम के लिए किसके पास जाऊँ। तभी यकायक उसका ध्यान हाथी की तरफ गया ।

उसने एक बार हाथी को सूंड में पानी भर कर उसे आग बुझाते देखा था, वह हाथी के पास गया और बोला, “ईंट बना देत नाय, बढ़ई खूँट उखाड़त नाय, राजा बढ़ई डाँटत नाय, रानी राजा रूठत नाय, चूहा रानी के कपड़े काटत नाय, बिल्ली चूहा खावत नाय, कुत्ता बिल्ली मारत नाय, डण्डा कुत्ता पीटत नाय, आग डण्डा जलावत नाय, बताओ मैं क्या करूँ ?”

कौए ने हाथी से अनुरोध किया कि वह चल कर आग बुझा दे। उसकी बात सुन कर हाथी कहने लगा, ” कौए, सचमुच तुम गलत जगह आ पहुँचे। मैं अपने देवता पर पानी डालूँ। यह पाप मुझसे कदापि नहीं होगा । मैं तुम्हारे एक चने के लिए ऐसा बुरा काम कभी नहीं कर सकता, तुम कहीं और जगह जाकर अपना काम पूरा करो ।”

कौआ अब निराश सा होकर बैठ गया। लेकिन उसके मस्तिष्क में एक नाम और आया । वह थी चींटी । उसे आशा तो नहीं थी कि चींटी सहायता कर पायेगी। पर वह उड़ कर जब जा रहा था, उसे चोंटी दिखाई दे गई।

वह रुककर चींटी से बोला, “खूँटी चना देत नाय, बढ़ई खूँट उखाड़त नाय, राजा बढ़ई डाँटत नाय, रानी राजा रूठत नाय, चूहा रानी के कपड़े काटत नाय, बिल्ली चूहा खावत नाय, कुत्ता बिल्ली मारत नाय, डण्डा कुत्ता पीटत नाय, आग डण्डा जलावत नाय, हाथी आग बुझावत नाय, बताओ मैं क्या करूँ।

कौआ चींटी से कहने लगा, “मैं बड़ी आशा और विश्वास लेकर तुम्हारे पास आया हूँ। मेरा विश्वास है तुम मेरा काम अवश्य करोगी। चींटी बोली, “भैया कौए मैं हूँ तो छोटी पर बता मुझे क्या करना है? मैं तेरी सहायता अवश्य करूँगी ।” Kauve or Chane ki Kahani

कौआ खुशी से उछल पड़ा और बोला, “बहिन, तू मेरे साथ चल कर हाथी को काट ले। बस मेरा काम बन जायेगा । ” चींटी तुरन्त कौए के साथ चल दी। जब हाथी ने चींटी को कौए के साथ आते देखा । वह घबड़ा गया । वह हाथ जोड़ कर कहने लगा, “कौए भाई, नाराज मत हो मैं अभी आग बुझाता हूँ।”

हाथी भी कौए और चींटी के साथ आगे चला, आग उन तीनों को आता देख कर कहने लगी, “कोए. मैं अभी डण्डे को जला देती हैं। आग भी उनके साथ चल दी। तभी डण्डा मिला। डण्डा बोला, “भैया, चलो मैं अभी कुत्ते को पीटता हूँ।” इतना कह कर डण्डा भी उनके साथ साथ चल दिया ।

कौए को इतने लोगों के साथ आते देख कर कुत्ता भी तुरन्त बिल्ली को मारने इनके साथ चल दिया।

बिल्ली ने जब कुत्ते को अपनी ओर आते देखा, वह कहने लगी, “कौए भाई, चूहा तो मेरा भोजन है लो मैं अभी चूहे को खा जाती हूँ।” बिल्ली इनके साथ हो ली ।

चूहा इन सभी को आता देख खुद दौड़ कर चला आया और बोला, “कौए मुझे क्षमा कर दो। मैं अभी रानी के कपड़े, जाकर काटे देता हूँ।” चूहा भी इन्हीं के साथ चल दिया ।

ऊपर छत पर खड़ी रानी अपने बाल सुखा रही थी । तभी उसने सभी को एक साथ आते देखा वह बोली, ” मेरे कपड़े मत काटना, चूहे जी मैं अभी राजा से रूठ जाती हूँ ।”

उधर राजा भी वहीं आ गए। वे बोले, “रानी, मुझसे रूठने की क्या जरूरत है, लो मैं अभी बुलाकर बढ़ई को डाँटता हूँ ।” राजा ने सेवक भेज कर बढ़ई को बुलवाया ।

बढ़ई आते ही कहने लगा, “राजा जी, आप मुझे न डाटें। मैं अभी चल कर खूँट उखाड़ देता हूँ। जब इतने सारे लोग खूँटी के पास चहुँचे तो खूँटी उन्हें देखकर कौए से बोली, “कौवे जी, यह लो अपना चना । मैं इस चने को लिए कब से तुम्हारी बाट देख रही हूँ।”

कौवे को उसका चना मिल गया। कौए ने चींटी को हार्दिक धन्यवाद दिया और सबको हाथ जोड़ कर विदा किया । उसने कष्ट के लिए सभी से क्षमा माँगी। सभी लोग अपने अपने घरों को लौट गए । कौआ खुश हो गया । उसने अपना चना खा कर प्रभु का गुण गान किया।

शिक्षा: आज की हमारी Kauve or Chane ki Kahani – कौवे और चने की कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती है कि हमे कभी भी किसी कार्य को छोटा नही समझना चाहिए और यदि आप सच्चे है तो अपने हक़ के लिए लड़ सकते है।

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