दोस्तों बचपन में अक्सर ही हमें हमारी दादी और नानी किस्से-कहानियां सुनाया करती थी, उन्ही कहानियो से निकालकर आज मैं आपके लिए Kachhua or Khargosh ki kahani – कछुआ और ख़रगोश की दौड़ की कहानी लेकर आया हूँ।
दोस्तों तुमने खरगोश देखा होगा, खरगोश भूरे और सफेद रंग के होते हैं। इसके अलावा खरगोश दूसरे भी कई रंगों के पाये जाते हैं और कुछ लोग तो उन्हें पालते भी हैं। खरगोश को संस्कृत में शशक कहते हैं। खरगोश बहुत छोटा जानवर होने पर भी दौड़ने में बहुत तेज होता है। इस कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती है कि हमे कभी घमंड नही करना चाहिए। तो चलिए कहानी को विस्तार से जानते है।


Kachhua or Khargosh ki kahani – कछुआ और ख़रगोश की दौड़ की कहानी
एक जंगल में एक बहुत ही सुन्दर झील थी उस झील में एक कछुआ रहता था। वह बहुत ही शांत और सरल स्वभाव का था। झील के पास ही झाड़ियो में एक खरगोश रहता था। खरगोश स्वभाव से बहुत ही चंचल और नटखट था, इसी के साथ वह बहुत घमंडी भी था उसे अपनी सुन्दरता और तेज भागने वाली चाल पर बहुत घमंड था।
एक बार खरगोश अपनी तारीफ करते हुए कहने लगा -‘ मैं बहुत अच्छी चौकड़ी मारता हूँ। मुझसे तेज संसार में और कोई दौड़ नहीं सकता। Kachhua or Khargosh ki kahani
पास में ही कछुआ झील से खरगोश की बातें सुन रहा था। कछुए ने कहा- ‘भाई ! तुम बहुत तेज दौड़ते हो, यह बात तो ठीक है, लेकिन किसी को घमंड नहीं करना चाहिये। घमंड करने से लज्जित होना पड़ता है।
खरगोश ने कहा- ‘मैं अपनी झूठी बड़ाई तो करता नहीं। अपने सच्चे गुण को कहने में क्या दोष है? तू रेंगता हुआ कीड़े की चाल चलता है, इसीलिये मेरा गुण सुनकर तुझे जलन होती है।
जब खरगोश कछुए को बहुत चिढ़ाने लगा तो कछुए ने कहा- ‘आपको अपनी चाल का घमंड है तो आइये, हमारी-आपकी दौड़ हो जाय। देखें कौन जीतता है ! खरगोश ने भी कछुए की बात मान ली।
खरगोश ने खूब दूर दिखने वाले एक पेड़ को बताकर कहा- ‘अच्छी बात है, चलो, उस पेड़ के पास जो पहले पहुँचेगा, वही विजयी माना जायगा । ‘
Kachhua or Khargosh ki kahani खरगोश ने सोचा कि बेचारा कछुआ रेंगता हुआ चलेगा। वह पेड़ से दो-चार हाथ दूर रह जाय और तब मैं यहाँ से चलूँ, तो भी चौकड़ियाँ भरूँगा और उससे आगे पहुँच जाऊँगा।
उसने कछुए से कहा- ‘तुम तो सुस्त हो, धीरे-धीरे चलोगे, अभी चल पड़ो। मैं थोड़ी देर में आता हूँ।
कछुआ बोला- ‘दौड़ तो अभी से आरम्भ मानी जायगी। आपके मन में जब आये आप तब चलें मुझे इससे क्या?
खरगोश ने कछुए की बात मान ली। कछुआ धीरे-धीरे रेंगता हुआ चल पड़ा। खरगोश ने सोचा यह तो बहुत देर में पेड़ तक पहुँचेगा। तब तक मैं आराम कर लूँ। वह वहीं लेट गया और सो गया। Kachhua or Khargosh ki kahani
खरगोश गहरी नींद आ जाने के कारण सोता रहा और उसे पता ही नहीं लगा कि कितनी देर हो चुकी है? जब उसकी नींद टूटी और दौड़ता हुआ पेड़ के पास पहुँचा तो देखता है कि कछुआ वहाँ पहले से पहुँच गया है। खरगोश लज्जित हो गया।
उसने स्वीकार किया कि घमंड करना बुरा होता है। घमंडी का सिर नीचा होता है।
शिक्षा- घमंड करने वाले और काम को टालने वाले सदा असफल और अपमानित होते हैं । सफलता और सम्मान उनको ही मिलता है, जो धैर्यपूर्वक काम में लगे रहते हैं। Kachhua or Khargosh ki kahani
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