जापान के लोग अपनी देशभक्ति और राष्ट्र भक्ति के लिए बहुत प्रसिद्ध है। अपने देश के लिए हंसते-हंसते प्राण दे देना जापान के लोगो के लिए बड़े गौरव की बात होती हैं। एक बार रूस और जापान में युद्ध हुआ था और रूस जैसे बड़े देश को जापान ने उस बार हरा दिया था उस युद्ध में जापानी सैनिकों ने वीरता के बड़े-बड़े काम किए थे जिसके दो उदाहरण नीचे दिए जा रहे हैं। Japani Sainik ki Kahani – जापानी सैनिक की देश भक्ति की कहानी – Short Story तो चलिए विस्तार से दोनों उदाहरण के बारे में पढ़ते है :-
एक किले के ऊपर रूसी सेना का अधिकार था। चारों और गहरी खाई थी और उसमें पानी भरा हुआ था। खाई के ऊपर का पुल रूसी सैनिको ने तोड़ दिया था। किले में रूस के थोड़े से सैनिक थे किंतु खाएं को पार किए बिना किले पर अधिकार नहीं हो सकता था।
युद्ध में उस किले का बहुत महत्व माना जा रहा था। जापानी सेनापति के पास खाई पर पुल बनाने का सामान नहीं था। और न ही समय क्योकि दूसरे दिन और रूसी सेना वहां आने वाली थी। सेनापति ने कुछ सोचकर सैनिकों से कहा- “इस खाई को मनुष्य के शरीर से भर देने को छोड़कर दूसरा कोई उपाय नहीं है। जापान के लिए जो प्रसन्नता से अपना बलिदान करना चाहता है, वह दो पग आगे बढ़ जाएं। पूरी की पूरी सेना दो पग आगे बढ़ गई।”
कोई सैनिक ऐसा नहीं था जो प्राण देने से पीछे रहना चाहता हो। सेनापति ने सबको नंबर बोलने को कहा उसके बाद उसने आज्ञा दी कि प्रति पांचवा सैनिक कपड़े उतार दे और हथियार रख कर खाई में कूद पड़े एक के ऊपर एक जापानी सैनिक उस खाई में धड़ाधड़ कूदने लगे। Japani Sainik ki Kahani
खाई उनके शरीर से भर गई अपने देश भक्त वीर सैनिकों की लाशों के पुल पर से जापानी सेना और उनकी भारी तोपों ने पुल पार करके उस किले पर अपना अधिकार कर लिया। इस तरह जापानी सैनिको ने अपने प्राण देश के लिए न्यौछावर कर दिए।
Japani Sainik ki Kahani – जापानी सैनिक की देश भक्ति की कहानी (2)
रूस जापान के उसी युद्ध की बात है, रूस की सेना ने एक पहाड़ी पर आक्रमण किया उस पहाड़ी पर जापान के थोड़े से सैनिक और एक भारी तो थी। रूसी सैनिक उस तोप पर अपना अधिकार करना चाहते थे क्योंकि उनके पास वहां इतनी बड़ी तोप नहीं थी। रूस के सैनिकों का आक्रमण बहुत भयानक था, वह संख्या में बहुत अधिक थे।
जापानी सेना को पीछे हटना पड़ा, वे अपनी भारी तोप को हटा नहीं सके। पहाड़ी पर रूसी सेना ने अपना अधिकार कर लिया उस तोप को चलाने वाला जो जापानी तोपची था। उससे यह बात सहन नही हुई कि की शत्रु उनकी तोप से उसी के पक्ष के सैनिकों के प्राण लेगा।
बिना किसी को बताए वह पेट के बल सरकता, छिपता उस पहाड़ी पर चढ़ गया। वह तोप के पास तो पहुंच गया किंतु तोप को हटाने या फिर नष्ट करने का उसके पास कोई उपाय नहीं था।Japani Sainik ki Kahani अंत में वह उसी तोप की नली में घुस गया।
रात बर्फ पड़ी तोप की नली में घुसे तोपची को ऐसा लग रहा था कि सर्दी के मारे उसकी नसों के भीतर रक्त जमता जा रहा है। उसकी एक एक नस फटी जा रही थी, सारे शरीर में भयंकर पीड़ा हो रही थी फिर भी वह दांत पर दांत दबाए वहां चुपचाप पड़ा रहा और भयंकर सर्दी के कारण वह तोपची उसी तोप की नली में मर गया।
सवेरा हुआ रूसी सैनिक तोप के पास आए, उन्होंने तोप की परीक्षा लेने का निश्चय किया और उसमे गोला बारूद भरा गया जैसे ही तोप छुटी। उस की नली में घुसे जापानी सैनिक के चिथड़े उड़ गए और तोप के सामने का वक्ष रक्त से लाल हो गया तोप की नली से रक्त निकल रहा था।
रूसी सैनिकों ने यह रक्त देखा तो कहने लगे- “ऐसा लगता है की तोप छोड़कर जाते समय जापानी लोग इसमें कोई प्रेत बैठा गए हैं, वह अब रक्त उगल रहा है। आगे पता नहीं क्या-क्या होगा, यहां से भाग चलना चाहिए।
प्रेत के भय से रूसी सैनिक उस तोप को वहीं छोड़कर उस पहाड़ी से भाग गए। एक जापानी तोपची ने अपना बलिदान देकर वह काम कर दिखाया जो एक सेना नहीं कर सकी थी। ऐसे देश भक्तों को शत-शत नमन।
[…] […]