भारत में प्राचीन काल से ही गुरु-शिष्य का एक अनोखा संबंध देखने को मिलता चला आ रहा है जहाँ बालक अपना घर छोड़कर अपने गुरु संग वन और आश्रम में रहकर शिक्षा ग्रहण करते थे आज हमारी ” Guru Shishya ki Kahani – जब गुरु ने शिष्य को दिया अनोखा कार्य” भी कुछ ऐसी ही है।
आज की कहानी में गुरु अपने शिष्यों को कुछ कार्य देते है और शिष्य वह कार्य भली प्रकार से पूर्ण भी करते है लेकिन फिर ऐसा क्या होता है कि गुरु और सभी शिष्य कुछ ऐसा देखकर आश्चर्यचकित हो जाते है चलिए कहानी में आगे बढ़ते है और विस्तार से जानते है:- Guru Shishya ki Kahani
Guru Shishya ki Kahani – जब गुरु ने शिष्य को दिया अनोखा कार्य
महर्षि कणाद अपने शिष्यों के साथ जंगल में आश्रम बना कर रहा करते थे। नित्य प्रातः उनके सभी शिष्य नदी में स्नान करने के बाद संध्या वन्दन, पूजा आदि नित्य कर्म से निवृत्त होकर गुरु जी से श्रद्धा पूर्वक शिक्षा ग्रहण करते थे।
आश्रम के सभी छोटे मोटे कार्य शिष्य स्वयं ही किया करते थे। आश्रम का जीवन कष्ट साध्य और पवित्रता से परिपूर्ण था। वर्षा ऋतु का आगमन समीप जान एक दिन महर्षि ने शिष्यों से कहा ” वर्षा ऋतु आने वाली है, क्यों न हम हवन तथा भोजनादि के लिए समिधा और सूखा ईंधन अभी से एकत्र कर लें। Guru Shishya ki Kahani
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शिष्यों ने कहा, “ जो आज्ञा गुरु देव ” और वे सब इस शुभ कार्य में बिना देरी किए कुल्हाड़ी आदि लेकर जंगल की तरफ चल पड़े।
उन्होंने बड़ी लगन, परिश्रम और हिम्मत से लकड़ी काट – काट कर गट्ठर बाँधे और वे उन्हें कन्धों पर लाद कर आश्रम में ले आए। गुरु जी बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने शिष्यों को आशीर्वाद दिया कुछ समय बाद सदैव की भांति सभी शिष्य ऋषि कणाद के सा नदी में स्नान करने गए।
रास्ते में उन्हें वही जंगल पड़ा, जहाँ से शिष्यों ने परिश्रमपूर्वक पसीना बहाते हुए सूखी लकड़ियाँ बटोर कर, काट कर इकट्ठा की थीं। वहाँ उस स्थान पर अब कुछ रौनक ही अलग थी। वह वन जो सदैव सूखा, वीरान पड़ा रहता था अब वहाँ रंगबिरेगे सुगन्धित सुन्दर पुष्प जगमगा रहे थे। Guru Shishya ki Kahani
सारा जंगल उन पुष्पों की अजीब सी सुगन्ध से सुवासित हो रहा था। वहाँ का दृश्य बड़ा मनोरम और आकर्षक था। गुरु जी और शिष्य यह दृश्य देखकर आश्चर्य करने लगे। वे सभी उस जंगल में यह विचित्र परिवर्तन देख अचरज में पड़ गए।
सावधानी से निरीक्षण कर शिष्य गुरुवर कणाद से कहने लगे, ” ऋषिवर ,क्या यह वही स्थल है जहाँ से हमने सूखी लकड़ियाँ काट – काट कर एकत्र कर बड़ी मेहनत से कस – कस कर गट्ठर बाँधे थे।
अपने शिष्यों की आश्चर्यचकित बातो को सुनकर ऋषि कणाद बोले तुम्हारे शरीर से श्रम की बूँदें पसीना बन कर भूमि पर गिरी थीं। आज हमें उसी स्थान पर यह रंग – बिरंगे सुगन्धित पुष्प खिले दिखाई दे रहे हैं ।
Guru Shishya ki Kahani वायुमंडल में यह सुगन्ध भी उन्हीं श्रम की बूँदें पसीना बन कर बही थी और भूमि को सींच कर उसे पौधों के लिए तैयार कर दिया आज उन्ही पौधों से पुष्पों से मीठी सुगंध निकलती दिखाई दे रही है।
ऋषि कणाद और कहते है, ” बालको ! यह सब तुम्हारे अथक परिश्रम का ही फल है। तुम्हारे शरीर से निकले शुद्ध, सच्चे और पवित्र पसीने की बूँदों के परिणाम से ही यहाँ रंग – बिरंगें सुगन्धित पुष्प खिले हैं।
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सच है परिश्रम से बहे पसीने की सुगन्ध किसी भी साधारण फूल की सुगन्ध से कहीं अधिक मीठी और प्यारी होती है। हमें सदा ही सतत् परिश्रम करते रहना चाहिए। ” बिना कष्ट उठाए , विना अथक परिश्रम किए इस संसार में कभी कोई महान् नहीं बना।
महान् बनने के लिए कठोर परिश्रम करना नितान्त आवश्यक है। ” यह सत्य हमें नित्य ध्यान में रखना चाहिए और सदैव ही परिश्रम करते रहना चाहिए।” Guru Shishya ki Kahani
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