हिन्दू धर्म या कहे सनातन धर्म बहुत ही प्राचीन है सदियों से आपने हिन्दू धर्म की अनेक गाथाये सुनी होगी लेकिन आज मै आपको सिक्खों के दसवे गुरु “गुरु गोबिंद सिंह” Guru Gobind Singh Sons के बारे में बताने वाला हूँ उनके चार पुत्र थे जिसमे से जोरावर सिंह और फ़तेह सिंह ने अपनी छोटी सी उम्र में ही अपने धर्म के लिए अपने प्राण नौछावर कर दिए थे,तब उनकी उम्र मात्र 13 वर्ष और 17 वर्ष थी | सिक्खों को हिन्दू धर्म के अंतर्गत ही माना जाता है यह हिन्दू के बड़े भाई कहे जाते है धर्म की रक्षा के लिए इन्होने अपने सिर पर पगड़ी रखी और हाथो में तलवार उठाई थी तो चलिए आज गुरु गोबिंद सिंह के पुत्रो की वीर गाथा के बारे में जानते है :-
Guru Gobind Singh Sons – गुरु गोबिंद सिंह के साहिबजादे
भारत में मुग़ल साम्राज्य दिन ब दिन अपने पैर पसार रहा था,उस समय औरंगजेब का शासन काल था| उसने सिक्खों के नौवे गुरु तेग बहादुर जी को मारने के उद्देश्य से उन्हें दिल्ली बुलवाया था |
दिल्ली जाने से पहले गुरु तेग बहादुर ने अपने पुत्र गुरु गोबिंद सिंह को अपने पास बुलाया और कहा “बेटा,आज से तुम ही सिक्खों के गुरु हो | तुम प्राण देकर भी धर्म की रक्षा करना” |’लो बाबा हरगोबिन्द सिंह जी की तलवार पकड़ो”t| तलवार पर अंकित था “सिर दिया शेर (धर्म) न दिया”|
उन्होंने कहा पता नही मै वापस लौट पाऊं या नही आज से तुम्हे धर्म की रक्षा करनी है और यह कहकर वो चले गये और वहां पर औरंगजेब ने उन्हें धर्म के चलते सिर कलम करवा दिया | लेकिन गुरु तेग बहादुर ने अपना सिर नही झुकाया |
गुरु गोबिंद सिंह के चार पुत्र थे| Guru Gobind Singh Sons गोविन्द सिंह जी उन्हें “साहिबजादे” कहकर पुकारते थे और प्रजा जन उन्हें बाबा कहते थे | चारो ने धर्म की रक्षा में अपने प्राणों का बलिदान दे दिया| उन्होंने भी न तो अपने पूर्वजो की आन तोड़ी और न ही अपनी शान में धब्बा लगने दिया,जब तक जीवित रहे एक शेर की भांति जीवित रहे |
श्री गुरु गोविन्द सिंह की तीन पत्नियाँ थी,पहली पत्नी जीतो जिनके तीन पुत्र थे जुझारू सिंह,जोरावर सिंह और फ़तेह सिंह और दूसरी पत्नी थी सुंदरी जिनके पुत्र अजित सिंह थे इसके अलावा उनकी तीसरी पत्नी थी साहिब कौर जिनका कोई पुत्र नही था |
कहा जाता है की एक बार मुग़ल सेना ने घेर लिया था उस समय वो अपने परिवार के संग चमकौर दुर्ग में थे | उन्होंने अपनी माता गुजरी देवी और दो बालक जोरावर सिंह और फ़तेह सिंह को बाहर भिजवा दिया था | कई दिनों तक युद्ध चला अंत में जब रसद और युद्ध सामग्री कम हो गई और विजय की कोई आशा नही बची तो सबने बाहर निकलकर अपने शत्रुओ को मरते हुए वीर गति पाने का निश्चय किया |
उसी समय उनके दोनों बड़े बैठे अजित सिंह और जुझारू सिंह उनके पास आये वह भी कई दिनों से भूखे प्यासे थे | गुरु गोविन्द सिंह जी ने कहा “पुत्रो डर तो नही लग रहा” जवाब में अजित सिंह बोले पिताजी डर तो दुश्मन की आँख में लग रहा है जो शेर के सामने आकर उसका सामना नही कर रहे बल्कि छुप कर और पीछे से वार कर रहे है | Guru Gobind Singh Sons
जुझारू सिंह बोले “पिता जी बहुत जोरो की भूख और प्यास लग रही है आपकी आज्ञा हो तो दुश्मन के खून से अपनी प्यास बुझाई जाये”|
पुत्रो की बात सुनकर गुरु गोबिंद सिंह जी खुश हो गये और बोले “जाओ मेरे शेरो और दुश्मन के खून से अपनी भूख प्यास मिटाओ”|
यह कहना था की दोनों बालको ने अपने पिता की आज्ञा मानकर किले के दुर्ग द्वार से बाहर निकले और दुश्मन को मरते-काटते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये | वहीं दूसरी तरफ माता गुजरी देवी और दोनो छोटे बालक जोरावर सिंह और फ़तेह सिंह भी मुग़ल सेना की पकड़ में आ गये | उन्हें बंदी बना दिया गया लेकिन बालको के मस्तक पर भय का कोई चिह्न नही था |
बालको का भोला चेहरा देखकर सूबेदार को तरस आ गया और वह बालको से बोला “बच्चो अगर तुम इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लो तुम्हारी जान बच सकती है”|
सूबेदार की बात सुनकर छोटे साहेब फ़तेह सिंह ने जवाब दिया “नही हम इस्लाम को कभी स्वीकार नही करेंगे हमे अपना हिन्दू धर्म प्राणों से प्यारा है”| सूबेदार यह जवाब सुनकर तिलमिला उठा और फिर एक बार समझाने की और बालको को लालच देकर बहलाने फुसलाने की कोशिश करने लगा |
वह बोला “मेरी बात मान लो तो बादशाह तुम्हारी जान बक्श देंगे और तुम्हे खूब दौलत से नवाजेंगे साथ ही तुम्हारी शादियाँ हूर की परियो से भी कराएँगे”| Guru Gobind Singh Sons लेकिन वह दोनों बालक अपनी बात से अड़े रहे,उन्होंने साफ कह दिया “हम स्वर्ग के बदले में भी अपना धर्म नही छोड़ सकते हमारा धर्म अमर है | हम हिन्दू पैदा हुए है और हिन्दू ही मरेंगे”|
बालको की तीखी बाते सुनकर वजीर खान तिलमिला उठा उसने जल्लादों को हुक्म डे दिया “इन दोनों बालको को दीवार में चिनवा दो”| जल्लादों ने हुक्म की तामिल की और उन दोनों छोटे छोटे बालको को सीने तक दीवार में चिन दिया लेकिन बालको के चेहरे पर एक अलग से ख़ुशी थी और वह दोनों मुस्कुरा रहे थे |
वजीर खान ने एक बार फिर कहा “बच्चो,अभी भी समय है बेकार में जान मत गवाओ तुम्हारे सामने अभी सारी जिन्दगी पड़ी है जीने को”| मेरी बात मान लो |” जोरावर सिंह बोले हमे मरना स्वीकार है लेकिन “इस्लाम नही”
कहते है की जब दीवार में छोटा भाई फ़तेह सिंह गले तक चिन गया तो बड़े भाई जोरावर सिंह की आँखों में आंसू आ गये | यह देखकर छोटे भाई ने पूछा “भैया,क्या मौत से डर लग रहा है ? तुम रो क्यों रहे हो ? क्या तुम्हे पिता जी की आज्ञा याद नही ?
छोटे भाई की बात सुनकर जोरावर सिंह बोला “नही भैया,मै मौत से नही डर रहा हूँ,मुझे तो बस एस बात का दुःख है कि मै तुमसे पहले पैदा हुआ,लेकिन यह दीवार तुम्हे मुझसे पहले ढक लेगी और तुम्हे स्वर्ग मुझसे पहले प्राप्त होगा |
दोनों ने हिन्दू धर्म की जय जय कार की और सदा सदा के लिए अपनी आँखे बंद कर ली |शत शत नमन है गुरु गोबिंद सिंह और उनके वीर पुत्रो का Guru Gobind Singh Sons,धन्य है भारतवर्ष की यह भूमि जहाँ एक से एक सपूत पैदा हुए है मै धन्य हूँ जो मेरा इस पावन धरती पर जन्म हुआ |
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