दोस्तों कहते है एकता में बल होता है यह तो आपने कई कहानियो और किस्सों के माध्यम से समझा होगा लेकिन क्या आपने कभी इसका एहसास किया है शायद नही और शायद हाँ। तो चलिए आज मैं आपके लिए एक ऐसी ही एक Do Bhaiyo Ki Kahani लेकर आया हूँ जिसमे आप यह सीखेंगे की कैसे हम बिना किसी लडाई झगड़े से किसी को सबक सिखा सकते है और मिलकर रह सकते है।
Do Bhaiyo Ki Kahani – दो भाइयो की कहानी – अमरुद के पेड़ की कहानी
एक किसान था वह बहुत मेहनती था, सारा दिन खेत पर काम करता रहता और सारा दिन खेत में ही रहता था। कभी-कभी ऐसा होता था कि उसकी रात भी खेत में ही गुजरती थी। उस किसान के दो बेटे थे बड़ा बेटा रामू और छोटा बेटा रमेश। दोनों बेटों के स्वभाव में काफी अंतर था, एक तरफ जहां बड़ा बेटा स्वभाव में सरल और भोला भाला था, वहीं दूसरी तरफ छोटा बेटा स्वभाव से बड़ा ही चंचल, बुद्धिमान और स्वार्थी था।
अक्सर बड़ा बेटा अपने पिता के साथ खेत के कामों में अपने पिता की मदद किया करता था। वहीं दूसरी तरफ छोटा बेटा स्वार्थी और आलसी होने के कारण कभी खेत पर नहीं जाता था।
छोटे बेटे के इस स्वभाव से हमेशा ही किसान रमेश को डांटता रहता था, लेकिन बड़ा बेटा रामू हमेशा अपने छोटे भाई का पक्ष ले लेता और कहता बापू रहने दो यह तो अभी छोटा है। अभी इसके खेलने खाने की उम्र है मैं हूं ना आपका हाथ बढ़ाने के लिए। Do Bhaiyo Ki Kahani
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ऐसा करते करते काफी वर्ष बीत गए। अब किसान का स्वास्थ्य भी खराब रहने लगा, किसान अब अक्सर ही बीमार रहने लगा। बड़े बेटे रामू ने अपने पिता के इलाज के लिए खेत बेचने सहित बहुत सारा धन किसान की बीमारी में लगाया लेकिन किसान का इलाज संभव ना हुआ और एक दिन किसान का देहांत हो गया। देहांत के बाद अब घर की जिम्मेदारी बड़े बेटे रामू ऊपर आ गई थी।
रामू गुजर-बसर करने के लिए दूसरे के खेतों पर मजदूरी करने लगा क्योकि उसने अपना खेत तो पिता ले इलाज कराने के लिए पैसो के चलते बेच दिया था। लेकिन घर चलाना मुश्किल हो रहा था। एक दिन रामू ने रमेश से कहा “अब तुम्हें भी घर की जिम्मेदारी उठानी चाहिए और कुछ कार्य करना चाहिए।
बड़े भाई की बात सुनकर रमेश भड़क उठा और बोला शायद मैं तुम्हारे ऊपर बोझ बन गया हूं ठीक है पहले बंटवारा कर लो उसके बाद अपनी अपनी जिम्मेदारी स्वयं उठाओ।
रमेश ने चालाकी दिखाकर घर की सभी अच्छी और कीमती वस्तुएं स्वयं ले ली और बाकी रामू को दे दी। अंत में तीन चीजें शेष बची जिसके लिए रमेश ने रामू के सामने उन चीजों को इस्तेमाल करने की तीन शर्त रखी।
Do Bhaiyo Ki Kahani वे तीन चीजें थी एक अमरूद का पेड़, एक कंबल और एक गाय।
पहली शर्त के अनुसार रमेश ने कहा-” पेड़ के ऊपर का हिस्सा मेरा और तने से नीचे का हिस्सा तुम्हारा रहेगा।”
दूसरी शर्त के अनुसार रमेश ने कहा-“गाय का मुंह का हिस्सा तुम्हारा और पेट के पीछे का हिस्सा मेरा रहेगा।”
तीसरी शर्त के अनुसार “कंबल को दिन के समय तुम रखोगे और रात के समय में रखूंगा।”
तीनों शर्तो को सुनकर बेचारा सीधा-साधा रामू हां कर देता है। अब अमरूद के पेड़ को खाद पानी रामू लगाता था लेकिन उसके अमरुद रमेश तोड़ लेता था। इसी तरह गाय को चारा खिलाने और पानी पिलाने का काम रामू करता था लेकिन गाय का दूध रमेश निकाल लेता था और गाय के गोबर से उपले बनाकर उन्हें चूल्हे में इस्तेमाल करता था।
ठीक इसी प्रकार तीसरी शर्त के अनुसार दिन के समय कंबल रामू के पास रहता था लेकिन रात के समय कंबल रमेश ले लेता था बेचारा रामू सारी रात ठंड में ठिठुरता रहता था।
इसी प्रकार कई वर्ष बीत गए कई बार रामू ने इन शर्तों का विरोध भी किया और कहा कि मैं मेहनत करता हूं जैसे गाय को चारा पानी में देता हूं और अमरूद के पेड़ को खाद पानी भी मैं देता हूं तो मुझे भी मेरी मेहनत का कुछ हिस्सा मिलना चाहिए। लेकिन शर्तों का हवाला देते हुए रमेश रामू की सभी बातें नकार देता था। Do Bhaiyo Ki Kahani
धीरे-धीरे समय बीतता रहा एक दिन रामू का एक बचपन का दोस्त शहर से रामू से मिलने आया और कुछ दिन यह घर पर ही ठहरा। रामू के दोस्त ने सारा हाल देखा तो रामू से सारी बात पूछी।
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तब रामू ने शुरू से आखिर तक सभी बातें बताई और सभी शर्तों को भी बताया। रामू का दोस्त को छोटे भाई रमेश की चालाकी समझते देर न लगी। उसने रामू को सलाह दी जैसे-जैसे मैं कहता हूं वैसा वैसा तुम करते जाओ। रामू ने हाँ करदी।
सुबह हुई उठकर रामू ने अपनी दिनचर्या शुरू की और अपने कार्यों में लग गया लेकिन आज गाय को ना तो चारा दिया ना पानी पिलाया, जिस कारण गाय भूखी थी। जब रमेश दूध निकालने गया तो गाय ने दूध नहीं दिया और जब रमेश दूध निकाल रहा था तो, रामू ने गाय के मुंह पर जोर से डंडा मारा तो गाय ने रमेश को जोर से लात मारी।
रमेश ने कहा-“यह क्या कर रहे हो? रामू ने जवाब दिया-“मैं अपने हिस्से को मारूं या प्यार करूं तुम से मतलब नहीं है।”
Do Bhaiyo Ki Kahani अब दिन हुआ तो रामू ने कुल्हाड़ी उठाई और अमरूद के पेड़ के पास पहुंचा और अमरूद के पेड़ पर जोर से कुल्हाड़ी मारी। यह देख रमेश कहने लगा-“अब यह क्यों कर रहे हो पेड़ कट जाएगा।
जवाब में रामू ने कहा- “शर्त के अनुसार पेड़ के नीचे का हिस्सा मेरा है मैं इसको चाहे पानी दूँ या फिर काट डालूं। रमेश ने काफी हाथ पैर जोड़े तो रामू ने पेड़ नहीं काटा।
अब शाम हुई तो रामू ने कंबल को पूरा गीला कर दिया और फैला दिया रात होने में कुछ ही घंटे बाकी थे। कंबल गीला होने के कारण रमेश कंबल को ओढ़ नही पाया और पूरी रात ठंड में रामू की तरह ठिठुरता रहा।
इसी प्रकार से रामू हर रोज यही कार्य करता था। सुबह गाय को मारता, दिन में कुल्हाड़ी लेकर अमरूद का पेड़ काटने की कोशिश करता और हर शाम कंबल को गीला कर देता।
धीरे-धीरे रमेश को अपनी गलती का एहसास हो गया और उसने एक दिन रामू से अपनी गलती की क्षमा मांगी और सभी शर्तें खत्म कर मिलकर रहने का आग्रह किया रामू पहले से ही सरल स्वभाव का था। वह मान गया अब दोनों भाई मिलकर हंसी-खुशी रहने लगे।
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