देश भक्ति एक ऐसा जूनून है जो अगर किसी के सिर चढ़ गया तो उसके लिए देश की आन से बड़ी कोई चीज़ नही है और देश भक्ति तो हम हिन्दुस्तानियों को विरासत में मिली है हमारे पूर्वज और हमारे प्रेरणास्रोत कई ऐसे क्रांतिकारी हुए है जिनकी कहानियां सुनकर ही जोश शरीर में दौड़ जाता है ऐसी ही एक Desh Bhakti Stories In Hindi आज मै लेकर आया हूँ “जब फकीर बने नाना साहब पेशवा” तो चलिए शुरू करते है कहानी को :-
Desh Bhakti Stories In Hindi – जब फकीर बने नाना साहब पेशवा
एक दिन कच्छ भुज के राजा के पास एक तेजस्वी फकीर अपनी जीर्ण-शीर्ण झोली पसारे आ खड़ा हुआ | देखने से वह मुसलमान प्रतीत हो रहा था | राजा ने उसे 15 रूपए उस फकीर की झोली में डाल दिए | फकीर चुपचाप चला गया और राजा ने उस फकीर से उसका नाम तक पूछना भी जरूरी नही समझा |
लेकिन कालान्तर में देखा गया की वही फकीर सुदूर अटक नगर में भटक रहा है | वही घूमते घूमते वह फकीर एक किले में बनी ब्रिटिश छावनी में घुस गया | वहां की रेजिमेंट के सुदेबार थे “भवानी सिंह” अचानक उनकी नजर उस फकीर पर पड़ी,तो देखकर आश्चर्य से दंग रह गये | भवानी सिंह को पहचानते देर न लगी |
वह फकीर कोई और नही बल्कि 1857 की क्रांति के महान नेता “नाना साहब पेशवा” है जिनकी गिरफ्तारी के लिए अंग्रजो ने 2 लाख रूपए नगद देने को घोषणा कर रखी थी | आश्चर्य ! वही नाना साहब अंग्रेजो की छावनी में मौजूद है | Desh Bhakti Stories In Hindi हालांकि की फकीर बने नाना साहब कभी अपना नाम “नाना भट्ट” तो कभी “अप्पाराम” बताते थे परन्तु उनका नाम “अप्पाराम” ज्यादा प्रसिद्ध था |
अंग्रेजो ने यह सुचना अखबारों में छपवा रखी थी की ‘नाना साहब पेशवा और तात्या तोपे को फांसी दी जा चुकी है |’ इस खबर के छपने के बावजूद एक दिन नाना साहब पेशवा ने बीकानेर (राजस्थान) जाकर वहां के एक घने निर्जन जंगल में तात्या तोपे से भेट की थी | जब अंगेजो ने उन दोनों के जिन्दा होने की खबर सुनी तो जाँच पड़ताल शुरू की कि अगर वह दोनों जिन्दा है तो उनके स्थान पर फांसी पर चढ़ने वाले कौन थे?
इसी खोजबीन के दौरान अंग्रेजो ने आखिर 19 जून 1863 को दो आदमी गिरफ्तार किये जिनकी शक्ल नाना साहब पेशवा और तात्या तोपे से मिलती थी | उनका नाम था ‘जमुनादास और गोपालजी’ गोपाल जी अँधा और लाचार था | वह चिल्ला चिल्लाकर एक ही बात दोहरा रहा था की नाना साहब पेशवा अब जिन्दा नही है| अंग्रेज अफसर फिर भी उन दोनों पर विश्वास नही कर रहे थे और लगातार कई दिनों तक उन दोनों को जेल में ही रखा गया और प्रताड़ित किया गया | शायद अंग्रेज यह समझ रहे थे इन्ही दोनों में से एक नाना साहब पेशवा है जो झूट बोलकर हमे बहला रहे है | Desh Bhakti Stories In Hindi
11 वर्ष बाद फिर से एक बार एक आदमी को गिरफ्तार किया गया जिसका नाम हन्वन्ता था | वे उसे ग्वालियर से कैद कर कानपुर ले गये और वह उसकी शिनाख्त 8 अंग्रेज अफसरों से करायी जिनका दावा था की उन्होंने नाना साहब पेशवा को देखा है |
जिस महान क्रांति कारी (नाना साहब पेशवा) का साज सामान कभी 8-8 लश्कर हाथी लेकर चलते थे | आगे आगे नगाड़े ढोल बजते रहते थे वही अब दर बदर की ठोकरे और फरार होकर घूम रहे है | मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए फकीर का वेश धारण किये हुए है उनका हाल कुछ ऐसा था की कंधे पर फटी झोली, फाका मस्ती, संकट, संघर्ष, समर्पण की इच्छा से सब त्याग कर एक भिक्षु की भांति घूम रहे है | नाना साहब को अक्सर ही कहते हुए लोगो ने सुना था
“अब तो हम डाल चुके अपने गले में झोली,
हमेशा एक होती है फकीरों की बोली,
रक्त का फाग मचाएगी हमारी टोली,
हमारी फाका मस्ती एक दिन जरूर रंग लायेगी”
नाना साहब पेशवा इसी तरह 23 वर्ष तक फरार रहे उनके न जाने कितने सैनिक और साथी अंग्रेजो से युद्ध कर वीरगति को प्राप्त हुए | इसके अलावा उनके साथ के करीब 277 साथी क्रांतिकारियों को काले पानी की सजा काटने के लिए दूर अंडमान की जेल में भेज दिया था|
त्याग और बलिदान की यह परंपरा उनकी पुत्री ने भी निभाई नाना साहब की दत्तक पुत्री मैना बाई,नाना साहब से बिठुर छोड़ते समय बिछड़ गई और वही महल में रह गई जिसे अंग्रजो ने पकड़ लिया और उसे बिठुर से पकडकर कानपुर ले गये और वहां ले जाकर उसे बहुत प्रताड़ित किया और अंत में जिन्दा आग में झोक दिया |
नाना साहब की पत्नियाँ पति (नान साहब) के होते हुए भी नेपाल में ‘विधवा’ वेश में जीवन व्यतीत कर रही थी ताकि अंग्रेजो को यह न पता चल जाये की नाना साहब पेशवा अभी जिन्दा है | नाना साहब पेशवा के कोई परिवारजन उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में रहते है,जो की गैर-महाराष्टीय वंश नामादि से जाने जाते है | धन्य है ऐसे महान क्रांतिकारी Desh Bhakti Stories In Hindi जिन्होंने अपना सब कुछ देश के लिए बलिदान कर दिया |
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