Bandar or Magar ki Dosti Story – बन्दर का कलेजा खाना है

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Bandar or Magar ki Dosti
Bandar or Magar ki Dosti

दोस्तों कहते है स्वार्थी व्यक्ति से कभी दोस्ती नहीं करनी चाहिए । इसका कारण यह है कि जबतक उस व्यक्ति का आपसे स्वार्थ निकलेगा तभी तक वह आपको दोस्त रहेगा। कुछ ऐसा ही आज कि हमारी कहानी में भी है जिसका शीर्षक है “Bandar or Magar ki Dosti Story – बन्दर का कलेजा खाना है।”

कहानी में बन्दर और मगरमच्छ दो बड़े ही अच्छे दोस्त होते है लेकिन एक दिन कुछ ऐसा होता है कि मगरमच्छ अपने दोस्त बन्दर का कलेजा अपनी पत्नी को देना चाहता है लेकिन ऐसा क्या होता है कि मगरमच्छ अपने दोस्त बन्दर का कलेजा लेना चाहता था, आइये जानते है अपनी इस कहानी से। 

Bandar or Magar ki Dosti Story – बन्दर का कलेजा खाना है

प्राचीन काल में एक बहुत बड़ी झील थी। झील के किनारे जामुन का विशाल वृक्ष था। उस पर बहुत मीठे और स्वादिष्ट फल लगते थे । उस पेड़ पर एक बन्दर रहता था। बन्दर बड़ा ही बुद्धिमान था। वह मोठे-मीठे फल खाता और कुछ फल नीचे पानी में गिरा देता था ।

पेड़ के नीचे पानी में एक मगर रहता था। वह उन गिरे हुए जामुनों को बड़े मजे से खा लिया करता था। उसे यह फल इतने अच्छे, मीठे और स्वादिष्ट लगे कि वह उस स्थान पर नियमित आने लगा । धीरे-धीरे जामुन के कारण ही बन्दर की मगर से मित्रता हो गई।

अब तो बन्दर उसे खूब फल गिरा गिरा कर खिलाने लगा । मगर भी बन्दर से प्रेम भरी बातें करता था । एक दिन मगर ने बन्दर के कहने पर मीठे-मीठे जामुन घर ले जाकर अपनी पत्नी को खिलाए। मगर की पत्नी को जामुन इतने पसन्द आए कि वह अब तो रोज ही मंगा-मंगा कर जामुन खाने लगी। उसे जामुन की चाट पड़ गई । बिना जामुन खाए उसका मन ही नहीं भरता था ।

एक दिन मगर की पत्नी ने पूछा, “नाथ, इतने मीठे फल आप कहाँ से लाते हो ?”

मगर ने कहा, “मेरा एक मित्र बन्दर है। वह वहीं झील के किनारे जामुन के पेड़ पर रहता है। वही मुझे ये मीठे फल नीचे पानी में गिरा देता है । मैं उन्हीं को उठा कर तुम्हारे लिए घर ले आता हूँ ।”

यह सुनकर स्त्री बोली, “जो बन्दर नित्य इतने मीठे फल खाता है, उसका कलेजा कितना मीठा होगा ? स्वामी, आप मुझे उसका कलेजा लाकर दें। मेरी इच्छा बन्दर का कलेजा खाने की है।”

मगर ने बहुत समझाया कि बन्दर मेरा मित्र है, धर्म भाई है। मैं उसे नहीं मार सकता । पर पत्नी के सामने उसकी एक न चली। वह विवश हो गया । वह दुःखी मन से बन्दर के पास गया ।बन्दर ने मगर को उदास देखकर उसकी उदासी का कारण जानना चाहा। Bandar or Magar ki Dosti Story – बन्दर का कलेजा खाना है।

मगर बोला, “आज मेरी पत्नी ने मुझे बहुत बुरा भला कहा, उसने कहा कि तुम कितने बुरे हो अपने उस मित्र को जो तुम्हें नित्य मीठे फल खिलाता है, एक बार भी खाना खिलाने घर नहीं लाए । तुम्हें तो नरक में भी स्थान नहीं मिलेगा ।

मित्र सच तो यह है कि तुम्हारी भाभी ने आज घर सजाया संवारा है, बड़े अच्छे पकवान बनाए हैं। वह तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही होगी । उसका कहना है आज अपने मित्र को अपने साथ अवश्य लाना ।”

बन्दर बोला, ” मित्र, मैं तुम्हारे घर कैसे जा सकता हूँ ! तुम जल में रहते हो और मुझे तो तैरना भी नहीं आता है । मैं भूमि पर चलने वाला जीव हूँ ।”

यह सुन कर मगर बोला, “मैं तुम्हें अपनी पीठ पर चढ़ा कर ले चलूँगा । तुम्हें डरने और चिंता करने की कोई बात नहीं है ।” बन्दर, मगर के कहे अनुसार कूद कर मगर की पीठ पर सवार हो गया ।

जब मगर बीच झील में पहुँचा उसने सारी सही बात बता दी । ताकि बन्दर मरने से पहले प्रभु का स्मरण कर ले और साथ ही उसे विश्वासघात करने का पाप न लगे।

इधर बन्दर ने मौत सामने खड़ी देखकर अपनी रक्षा का उपाय सोचा। उसने बुद्धि लगा कर युक्ति सोच निकाली ।

Bandar or Magar ki Dosti Story – बन्दर का कलेजा खाना है। वह चुपचाप बैठा रहा, फिर यकायक बोला, “भाई अगर यही बात थी तो मित्र के नाते तुमने मुझे पहले ही क्यों नहीं बता दिया। मेरा कलेजा तो पेड़ पर टैंगा हुआ है। इसी कारण मुझे ठण्ड भी लग रही है। अगर तुम चाहो तो लौट चलो।

मैं कलेजा अपनी भोली प्यारी सी भाभी को बड़ी खुशी से भेंट कर सकूँगा । नहीं तो वह नाराज होगी कि मैंने देवर जी से एक छोटी-सी चीज माँगी थी और उन्होंने यह भी नहीं दी।”

मगर ने मन-ही-मन सोचा यह तो बहुत अच्छा हुआ साँप भी मर गया और लाठी भी न टूटी । मैं बन्दर को लौटा कर पेड़ तक ले जाता हूँ। वह कलेजा भी उतार लावेगा, मरेगा भी नहीं और पत्नी की इच्छा भी पूरी हो जायेगी । यह सोच कर मगर बीच धार से लौट पड़ा।

यद्यपि आज मगर को बहुत परिश्रम करना पड़ा था पर वह प्रसन्न था कि उसका काम बन गया।

जैसे ही मगर वृक्ष के नीचे पहुँचा बन्दर ने अपनी पूरी ताकत लगा कर बड़ी जोर की ऊँची उछाल लगाई और वृक्ष की डाल पकड़ कर बैठ गया। अब वह मगर की पहुँच से बहुत दूर था। वह निश्चिन्त था । उसने चैन की साँस ली। वह विश्राम की मुद्रा में बैठा था ।

उसे बैठे देख कर मगर कहने लगा, “मित्र, जल्दी करो, कलेजा लेकर आओ । यहाँ मैं तुम्हारा इन्तज़ार कर रहा हूँ। देर हो गई तो तुम्हारी भाभी परेशान हो उठेगी । खाना ठण्डा हो जायेगा ।

बन्दर ने बैठे ही बैठे हँसते हुए कहा, “मूर्ख ! धोखे बाज़ ! क्या तू समझता है कि किसी प्राणी के दो कलेजे होते हैं। जा अब कभी यहाँ मत आना।” मगर ने काफी खुशामद की बातें बनाई, पर बन्दर अब सब कुछ समझ गया था। उसने कहा, “मैं अब तेरा कभी विश्वास नहीं करूँगा।”

आज की कहानी “Bandar or Magar ki Dosti Story – बन्दर का कलेजा खाना है। से हमे यह शिक्षा मिलती है कि हमे कभी की स्वार्थी और लोभी से दोस्ती नहीं करनी चाहिए, हमे हमेशा ही अपने दोस्तों का चयन देख, परख के करना चाहिए  

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