आज की कहानी की बात करे तो जैसा की आप बखूबी ही जानते है हमारा देश भारत शुरू से ही मुग़ल साम्राज्य के अधीन था उसके बाद अंग्रेजो ने हमारे देश पर सैकड़ो सालो तक राज किया लेकिन इन सब के बाजजूद हमारे देश में अनेक वीर पैदा हुआ है जिनके शौर्य की गाथा आज भी लोगो की जुबान पर है ऐसे ही जोधपुर के महाराणा यशवंत सिंह के पुत्र Bahadur Balak Prathvi Singh की कहानी आज मै आपको बताने वाला हूँ जिसने बेहद ही छोटी सी उम्र में ही एक खूंखार शेर का जबड़ा चीर दिया था |
“Bahadur Balak Prathvi Singh”
एक साहसी बालक जिसने चीर दिया खूंखार शेर का जबड़ा
यह बात उस ज़माने की है जब दिल्ली के सिंहासन पर मुग़ल बादशाह औरंगजेब का शासन था उसके जुल्मो और अत्याचारों से प्रजा हमेशा ही भयभीत रहती थी | उसने कई मासूम लोगो को कैद कर रखा था और अपने आस पास के राजाओ पर आक्रमण कर उसके राज्य को भी हथिया लेता था | जोधपुर के महाराणा यशवंत सिंह भी उसके दरबार में थे | उनमे उस अत्याचारी और निर्दयी से अकेले निपटने की शक्ति नही थी उसके पास विशाल सेना और युद्ध के लिए पर्याप्त मात्रा में युद्ध सामग्री भी थी |
एक दिन दरबार में औरंगजेब ने महाराणा यशवंत सिंह को देखकर अभिमान से कहा मेरे पास विशाल सेना है,एक से एक महाबली है और दुश्मन के लिए मेरे पास खूंखार शेर है जिन्हें मै अक्सर अपने दुश्मनों का मांस खिलाता हूँ “ऐसे शेर मेरे दरबार में शोभा पाते है”|
यह बात महाराणा यशवंत सिंह को चुभ गई और वह भरे दरबार में बोल पड़े “बादशाह माफ़ कीजियेगा लेकिन आपके शेर जैसे शेर तो मेरे आंगन में खुले में घूमते है”| Bahadur Balak Prathvi Singh
औरंगजेब को यह जवाब बहुत बुरा लगा वह तेजी से बोला “यशवंत सिंह अगर तुम्हे अपने शेर पर इतना ही अभिमान है तो मेरे और तुम्हारे शेर के बीच कुश्ती हो जाये”| महाराणा ने भी हाँ कर दी भरे दरबार में दिन,समय,तारीख और स्थान तय हुआ |
यशवंत सिंह का एक पुत्र था “पृथ्वी सिंह” | अभी वह बारह वर्ष का था लेकिन उसमे शेर सा साहस,हाथी सा बल और बिजली सी फुर्ती थी| इस छोटी से उम्र में उसका गठा हुआ शरीर सबका ध्यान अपनी और आकर्षित कर लेता था |
कुश्ती के निश्चित दिन मैदान लोगो से खचाखच भरा हुआ था|औरंगजेब सहित उसके सभी मंत्री और दरबारी वहां पर उपस्थित थे| उसका भूखा शेर पिंजड़े में इधर-उधर घूम रहा था| जिसे देख कर ही लोगो के पसीने छूट रहे थे | कुश्ती की सभी तैयारियां पूरी हो चुकी थी,बस यशवंत सिंह का और उसके शेर का इंतजार था |
सहसा दूर से यशवंत आते दिखे पर यह क्या ? उनके साथ शेर की जगह एक किशोर बालक था,बालक को देख सभी हैरान थे की आखिर यह कौन है और आज कुश्ती के दिन यह यशवंत सिंह के साथ कैसे है ?
औरंगजेब ने हैरानी से यशवंत सिंह से पूछा ” राणा साहब आपका शेर नही दिख रहा क्यों” कुश्ती के डर से जंगल में भाग गया क्या ? और यह कहकर सभी जोरो से हंसने लगे |
बड़े सीधे ढंग में महाराणा ने उत्तर दिया “आप चिंता न करे जहाँपनाह मेरा शेर मेरे साथ है और आज कुश्ती भी लडेगा|
यह सुनकर सभी आश्चर्यचकित हो गये और उनके किशोर बालक Bahadur Balak Prathvi Singh को देखने लगे| वह किशोर बालक शांति से बैठा हुआ था| उसकी कमर में तलवार लटक रही थी उसकी चमकदार आँखे देखते ही बनती थी उसके चेहरे पर एक अलग सा तेज़ था |
औरंगजेब ने शेर को लाने का आदेश दिया| उसका आदेश पाते ही सैनिक शेर का पिंजड़ा लेकर आये और मैदान के बीच में रख दिया | अब समस्या यह थी की पिंजड़ा कौन खोले सभी सैनिक जल्दी से मैदान से भाग गये | बालक सब समझ गया | इसने अपने पिता महाराणा यशवंत सिंह के चरण स्पर्श किये और मैदान में अपनी तलवार लेकर बढ़ने लगा |
पृथ्वी सिंह का उतावलापन देखकर महाराणा बोले ” ठहरो पुत्र तुम इस बेजुबान पशु पर शस्त्र से प्रहार करोगे यह अधर्म होगा,इससे हमारी जाती का अपमान होगा”| पिता की बात सुनकर पुत्र ने तलवार अपने पिता के चरणों में रख दी और अब शेर के पिंजड़े की और बढ़ने लगा |
पृथ्वी सिंह ने शेर का पिंजड़ा खोल दिया,मैदान में चारो तरफ एक सन्नाटा सा छा गया सभी लोग एक बार खूंखार शेर को देखते कभी एक बार बालक पृथ्वी सिंह को| शेर पहले तो एक बार कुछ कदम पीछे हटा लेकिन तभी उसने गुर्राकर पृथ्वी सिंह की तरफ छलांग लगा दी दोनों के बीच काफी लडाई हुई कभी शेर ऊपर तो पृथ्वी सिंह नीचे और कभी शेर नीचे तो पृथ्वी सिंह उसके ऊपर | ऐसा करते हुए दोनों को काफी समय हो गया |
शेर भूखा और गुस्से में था उसने अपने जबड़े खोल के पृथ्वी सिंह पर हमला किया पृथ्वी सिंह ने उसके जबड़ो को अपने दोनों हाथो से पकड़ लिया और जोर लगाकर चीर दिया | सभी लोग यह देखकर जोरो से तालियाँ बजाने लगे साथ ही,महाराणा यशवंत सिंह और बालक पृथ्वी सिंह की जय जयकार करने लगे | महाराणा यशवंत सिंह ने बढ़ कर अपने पुत्र Bahadur Balak Prathvi Singh को सीने से लगा लिया |
औरंगजेब ने भी खड़े होकर पृथ्वी सिंह के साहस और शक्ति की दाद दी लेकिन मन ही मन वह उसकी शक्ति और पराक्रम से घबरा गया| उसे मन ही मन यह डर सताने लगा की यह उसके लिए खतरा बन सकता है | इसलिए उसने पृथ्वी सिंह को मारने के लिए एक घिनौना षड्यंत्र रचा |
पृथ्वी सिंह के साहस और विजय के बदले में औरंगजेब ने उसे उपहार में जहर बुझे कपड़े दिए | जब उन कपड़ो को पृथ्वी सिंह ने पहना तो जहर का असर शरीर पर हो गया और उसकी मृत्यु हो गई | धन्य है ऐसे वीर और उनके माता पिता |
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