Bagule or Kauve ki Kahani – बगुले और कौवे की कहानी

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Bagule or Kauve ki Kahani
Bagule or Kauve ki Kahani

दोस्तों यह कहानी है एक कौवे और एक बगुले की जो कि दोनों एक नदी के किनारे रहते है Bagule or Kauve ki Kahani और कुछ समय बाद दोनों में दोस्ती हो जाती है और दोनों एक दुसरे के साथ बड़े ही प्रेम से रहते है लेकिन कुछ ऐसा होता है जो हम कहानी में आगे जानेगे

कौवा बगुले की तरह आकाश में लम्बी दूसरी तक उड़ना और मछली का शिकार करने की कोशिश करता है लेकिन ऐसा क्या होता है कि कौवा मरते मरते बचता है और बगुला ही उसकी मदद करता है तो ऐसा क्या होता है कि कौवा मरते मरते बचता है आइये कहानी में आगे बढ़ते है और जानते है 

Bagule or Kauve ki Kahani – बगुले और कौवे की कहानी

एक नदी के किनारे पेड़ पर एक कौआ रहता था। नदी के दूसरी ओर एक बगुला रहता था । बगुला सुबह – सुबह नदी किनारे आता और मछलियाँ पकड़ता। बगुले को प्रतिदिन ऐसा करते देख कौए ने सोचा कि क्यों न बगुले से दोस्ती कर ले।

यह सोच वह रोज नदी किनारे जाता और बगुले को नमस्कार करता। धीरे-धीरे दोनों में दोस्ती हो गई। बगुला मछलियाँ पकड़ने में माहिर था। वह अपने ढंग से रोज नई-नई मछलियाँ पकड़ता और कौए को खिलाता। Bagule or Kauve ki Kahani

कौए के तो दिन फिर गए थे। उसे हर दिन नया भोजन खाने को मिलता। बगुला आकाश में उड़ता, लेकिन निगाह उसकी नीचे रहती। मछली दिखाई देते ही वह तेजी से नीचे आता, अपनी लंबी चोंच पानी में डालता और पैर ऊँचे रख झट से मछली पकड़कर किनारे पर आ जाता। 

कौआ यह सब देखता तो उसका भी मन करता कि वह भी ऐसे ही मछलियाँ पकड़े। वह मन ही मन सोचा करता, “यह सब करना कौन-सा कठिन है।

” यह सोचकर उसने भी मछलियाँ पकड़ने का निश्चय किया। ऊपर उड़ना, निगाह नीचे की ओर रखना, मछली दिखाई देते ही नीचे आना, चोंच खोलकर पानी में डालना और पाँव ऊपर की ओर उठाना। मछली चोंच में आएगी नहीं तो जाएगी कहाँ?”

सब कुछ सोच विचार कर एक दिन कौआ आसमान में उड़ा। बहुत ऊँचा उड़ा। फिर तेज़ी से नीचे आया। पाँव ऊँचे रखें, चोंच नीची कर फुरती से मछली पर झपटा, लेकिन मछली खिसक गई। Bagule or Kauve ki Kahani

कौए ने बगुले की नकल तो की पर वह यह विचार नहीं कर पाया कि बगुले की चोंच और पाँव दोनों लंबे होते हैं। कौए की चोंच काई और बेलों में उलझ गई। पाँव ऊँचे थे ही कौआ छटपटाने लगा।

चोंच छुड़ाने की बहुत कोशिश की पर सिर पानी में डूबता ही गया। तभी बगुला वहाँ आ पहुँचा। उसे दया आ गई। बगुले ने बड़ी मुश्किल से कौए को पानी से बाहर खींचा।

किनारे लाकर बगुले ने कौए से कहा- “करते हो सो कीजिए, नकल न कीजिए काग। चोंच फँसेगी बेल में, पाँव बनेंगे काठ।”

कौआ अपनी गलती पर बहुत शर्मिंदा हुआ। उसने अपने दोस्त बगुले को उसकी जान बचाने के लिए धन्यवाद दिया और भविष्य में किसी की नकल न करने का भी निश्चय किया। कौआ समझ गया कि नकल के लिए भी अक्ल की जरूरत होती है। जिसके लिए जो कार्य बना है, उसे वही कार्य करना चाहिए। Bagule or Kauve ki Kahani

शिक्षा: हमे दुसरो को देख कर कभी उनकी नक़ल नही करनी चाहिए Bagule or Kauve ki Kahani

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