प्राचीन काल में कांची नगर में एक निर्धन दम्पति एक साधारण सी कुटिया में रहते थे | पति पत्नी दोनों ही भगवान के भक्त थे| पत्नी बड़ी ही साध्वी, सुशील और पतिव्रता थी| यह ब्राह्मण दम्पति भिक्षा मांग कर जीवन निर्वाह करते थे | इनके कोई संतान नही थी,लेकिन दोनों ही यह सोचकर संतुष्ट और प्रसन्न रहते थे की निर्धनता ही भगवत प्राप्ति में सहायक होती है | Atithi Devo Bhava
उनके घर में कोई अतिथि आता था तो,वह उसकी सेवा सत्कार कर स्वयं को धन्य मानते थे | इसी कारणवश उन्हें कभी कभी उपवास भी करना पड़ता था | भगवत भजन ही उनके जीवन का आधार था | उनकी अतिथि के प्रति इतनी श्रध्दा के चलते उनकी चर्चा दूर दूर तक फैली हुई थी |
एक दिन की बात है उस दिन मुट्टी भर चावल भी घर में न थे दोनों स्वयं भी भूखे ही थे वह दोनों सोच ही रहे थे आज कहीं कोई अतिथि न आ जाये और सहसा सन्यासी उनके द्वार पर आये और उन्हें एक आवाज़ सुनाई दी “नारायण नारायण” सन्यासी द्वार पर खड़ा है घर की भीतर कोई है ?
पुरुष झट से बाहर निकला और बोला सेवक के लिए क्या आदेश है स्वामी ?
सन्यासी बोला “एक मुट्ठी अनाज के लिए आया हूँ चलने में अशक्त हूँ”| Atithi Devo Bhava
दोनों के यह सुनते ही पेरो के नीचे से मानो जमीन ही खिसक गई हो कि घर में अनाज का एक दाना भी नही है और इन सन्यासी को हम एक मुट्ठी अनाज कैसे और कहाँ से लाकर दे |
तभी पुरुष ने कहा “स्वामी आप थके होंगे भीतर आये थोडा विश्राम करे तब तक मै आपके जल पान की व्यवस्था करता हूँ”| यह सुनकर सन्यासी घर में आ गये और एक और बैठ कर आराम करने लगे |
पति बोला अगर हमारे पास कोई गहने या फिर कीमती बर्तन बचे होते तो उन्हें बेच कर हम अनाज ले आते और सन्यासी का सत्कार करते लेकिन अब अनाज कहाँ से आएगा ?
पति की बात सुनकर पत्नी कुछ विचार कर बोली आप दुखी न हो मैंने एक उपाय सोचा है आप जाकर नाई से कैची मांग लाये |सन्यासी का अतिथि सत्कार अवश्य होगा | झटपट वह ब्राह्मण नाई से कैंची मांग लाया और अपनी पत्नी को दे दी | पत्नी बोली आप मुझे मत दीजिये बल्कि मेरे सर के बालो को काट लीजिये यह अत्यंत सुन्दर है मै इनकी वेंड़ी (चोटी) गूँथ देती हूँ | Atithi Devo Bhava कोई भी श्रृंगार प्रिय स्त्री इसे खरीद लेगी और बदले में कुछ पैसे दे देगी जिससे आप अनाज ले आना |
यह सुनकर पति ने उदास मन से पत्नी के केश कट दिए और पत्नी ने उसकी वेंड़ी (चोटी) गूँथ दी | पति ने उसे बाजार में बेच दिया जिसके बदले में उसे अच्छी कीमत मिली जिससे उसने अनाज और संस्यासी के सत्कार के लिए विशेष भोजन आदि खरीद लिया |
सब लेकर पति घर पहुँचा और पत्नी के साथ मिलकर संस्यासी को भोजन और अनाज भेट किया | निर्धन दम्पति ने सन्यासी के चरणों को जल से धोया और चरनामृत पिया | वह सन्यासी सारा भोजन खा गया और एक लम्बी डकार ली और ब्राह्मण से कहा की अब मेरे सोने की व्यवस्था करे |
दोनों ने मिलकर घास पूस से बना बिस्तर लगाया और पत्नी पंखा करने लगी और पति सन्यासी के पैर दबाने लगा| दोनों भूखे थे उन्होंने सारा खाना सन्यासी को दे दिया था और सन्यासी ने सारा खाना खा लिया था |
सन्यासी के सोने के बाद दोनों भूखे प्यासे ही लेट गये और आपस में बात करने लगे की संस्यासी अति दुर्बल और वृद्ध है इन्हें प्रातः कुछ खिलाकर विदा करेंगे | पत्नी बोली स्वामी आप सुबह जल्दी उठ कर भिक्षा मांग लाना वही पकाकर संस्यासी को खिला देंगे |
Atithi Devo Bhava संस्यासी को सोता समझ दोनों बाते करते करते सो गये अब सन्यासी उठे और अपने असली रूप में आ गये वह कोई संस्यासी नही थे वह स्वयं भगवान विष्णु थे जो उनकी परीक्षा लेने आये थे भगवान की परीक्षा में वह दोनों सफल हो गये थे|
प्रभु ने अपनी कृपा द्रष्टि चारो तरफ डाली उनकी कुटिया अब एक राज महल में बदल गई थी | भगवान विष्णु ने अपनी कृपा द्रष्टि सोते हुए दम्पति पर भी डाली पत्नी के केश वापस आ गये अब वह एक अत्यंत सुन्दर रानी बन गई थी और उसका पति एक राजा की भांति दिख रहा था |
दोनों पति पत्नी स्वस्थ,सुन्दर और सबल बन गये थे उनके महल में चारो तरफ धन ही धन और ऐश्वर्य और सभी सुख सुविधा मौजूद थी और यह सब कर भगवान विष्णु अंतर्ध्यान हो गये | प्रातः जब दोनों उठे तो दोनों सारा नजारा देख कर हैरान हो गये तभी उनकी नजर मंदिर में विराजमान भगवान विष्णु पर पड़ी जो मुस्कुरा रहे थे वह दोनों सब समझ गये की वह संस्यासी कौन थे जो उनके घर आये थे |
दोनों के नेत्रों से ख़ुशी के आंसू छलक उठे दोनों ने मंदिर में जाकर हाथ जोड़े और भगवान का धन्यवाद किया और प्रण किया की अपना सारा जीवन अतिथि सत्कार में ही व्यतीत करेंगे | कुछ समय बाद ब्राह्मण की पत्नी ने एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम दोनों ने विष्णु रखा | इसलिए कहा जाता है :-
“Atithi Devo Bhava – अतिथि देवो भव”
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