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Bagula Bhagat ki Kahani – जब बगुला बना भगत, हिंदी कहानी

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Bagula Bhagat ki Kahani
Bagula Bhagat ki Kahani

दोस्तों अक्सर हमारे बढे-बूढ़े हमे अच्छी अच्छी सीख देते है और समझाते है कि हमे कभी भी किसी पर आँख बंद करके भरोसा नहीं करना चाहिए अक्सर ही वही लोग हमे धोखा देते है जिनपर हम भरोसा करते है आज की हमारी कहानी का शीर्षक भी कुछ ऐसा ही है “Bagula Bhagat ki Kahani – जब बगुला बना भगत, हिंदी कहानी”

कहानी के अनुसार एक बगुला स्वयं को भगत बताकर छोटी छोटी और प्यारी सी मछलियों को बहला-फुसलाकर तालाब से दूर एक पत्थर पर पटक कर उन्हें मार कर खा जाया करता था लेकिन आखी कैसे एक दिन एक केकड़े ने उस बगुले भगत को मजा चखाया चलिए कहानी में आगे बढ़ते है और जानते है

Bagula Bhagat ki Kahani – जब बगुला बना भगत, हिंदी कहानी

किसी समय एक बड़ा विशाल सरोवर था । उसमें बहुत-सी छोटी-बड़ी मछलियाँ रहती थीं। वहाँ उस सरोवर पर प्रतिदिन एक बगुला मछली खाने आया करता था। वह कुछ समय बीतने पर बूढ़ा हो गया। वह दौड़-दौड़ कर अब मछली नहीं पकड़ सकता था । Bagula Bhagat ki Kahani

एक दिन भूख से परेशान जब वह अपने बूढ़ेपन पर आँसू बहा रहा था, तभी एक केकड़ा उधर आया । केकड़े ने पूछा, “भाई बगुले तुम इस तरह दुःखी होकर क्यों रो रहे हो ?”

बगुला बोला, “मुझे मछलियाँ मारते और खाते बहुत दिन हो गए। मुझे अब ज्ञान हो गया है। मैं अब मछलियाँ नहीं मारता । मुझे अपने किए गए बुरे कामों का दुःख हो रहा है । इसीलिए रो रहा हूँ।”

बगुले ने बातों ही बातों में केकड़े को स्वप्न की बात भी कह दी । बगुले ने अपने स्वप्न में देखा तो कुछ नहीं था पर बात गड़ ली थी कि उसने देखा कि आने वाले कुछ ही दिनों में अकाल पड़ेगा और यह तालाब भी सुख जायेगा। बारह वर्ष तक धरती पर वर्षा नहीं होगी । तालाब के सूख जाने से सब जलचर मर जायेंगे ।

केकड़े ने यह बात मछलियों को बताई, सब मछलियाँ इकट्ठी होकर बगुले को घेर कर बोली, “मामा, आप बताएँ कि हम क्या करें ।” बगुला मीठी वाणी में बोला, “मैं यहीं इसी सरोवर में जन्मा, पला और बड़ा हुआ हूँ। मुझे इस सरोवर के जलचरों से स्वभाविक प्यार हो गया है। इसीलिए मैं चिन्तित हूँ।”

बगुले की मीठी प्रेम भरी बातें सुन कर अन्य जलचर भी वहाँ आ गए। सब कहने लगे, “मामा, हम आपकी शरण हैं। अब आप ही हमें कोई उपाय बताइए कि हम क्या करें । ”

चालाक बगुला बोला, “यहाँ से दूर एक ऐसा महासरोवर है जिसमें अथाह पानी है, जो सैकड़ों सालों तक नहीं सूख सकता। यदि आप लोग चाहें तो मैं कुछ ही दिनों में आप सभी को वहाँ पहुँचा सकता हूँ। वहाँ आप सब चैन से रहेंगे।” Bagula Bhagat ki Kahani

इतना सुनना था कि सभी जलकर मछलियाँ, केकड़े, कछुआ आदि चिल्ला पड़े, “मामा, पहिले हमें, पहिले हमें।” वे खड़े होकर बड़ी देर तक मामा बगुला को घेरे रहे। बगुले की मन चीती हो गई ।

अब बगुला नित्य बारी-बारी से मछलियों को पीठ पर लाद ले जाता और दूर एक पत्थर पर पटक कर मार कर उन्हें खाने लगा। उसे ऐसा करते कई दिन हो गए। बगुला अब खुश था। मछलियाँ आदि सभी जलचर चिंता मुक्त थे ।

एक दिन केकड़ा आकर बगुले से बोला, “मामा मेरी आपसे भेंट सबसे पहिले हुई थी। अब मेरी बारी कब आयगी ! आप मुझे वहाँ कब ले चलेंगे ।”

बगुले ने मन ही मन सोचा ठीक है, बहुत दिनों से मछलियाँ खाते-खाते जी ऊब गया है। केकड़े का माँस चटनी का काम करेगा। आज मैं इसी को खाऊँगा। ऐसा निश्चय कर वह बोला, “अच्छा, चलो आज मैं तुम्हीं को पहुँचा देता हूँ ।” इतना कह कर बगुले ने केकड़े को अपनी गर्दन पर चढ़ा लिया । 

बगुला तेज चाल से उड़ा चला जा रहा था। केकड़े को दूर पर एक शिला दिखाई दी जहाँ मछलियों की हड्डियों का ढेर पड़ा था। यहाँ उसे दूर-दूर तक सरोवर अथवा पानी कहीं भी दिखाई न दिया । वह सब समझ गया ।

Bagula Bhagat ki Kahani वह बात बना कर बोला, “मामा, सरोवर अभी और कितनी दूर है ? आप मेरे बोझ से थक गए होंगे। अच्छा रहे आप थोड़ी देर रुक कर आराम कर लें।”

बगुले ने सोचा अब इसे सच बताने में हानि ही क्या है ? बचकर जायेगा कहाँ ? है तो मेरे कब्जे में ही । सो वह बोला, “बेटा, सरोवर भूल जाओ। यह तो मेरी चाल थी। तुम्हारी मौत भी अब पास ही है। मैं तुम्हें भी आगे शिला पर पटक कर मार कर खा जाऊँगा ।”

बगुले की बात अभी पूरी हो ही पाई थी कि केकड़े ने अपने पैने दाँत बगुले की कोमल गर्दन में गड़ा दिए, बगुला वहीं मर कर ढेर हो गया। उसकी गर्दन कट गई थी। केकड़ा उसी कटी गर्दन को लेकर धीरे-धीरे अपने पुराने सरोवर के किनारे पहुँच गया। उसने देखा वहाँ कई जलचर बगुले की प्रतीक्षा में खड़े थे ।

केकड़े को देख कर वे उसके पास आए और बगुले की कटी हुई गर्दन को देख कर पूछने लगे, “भाई, यह क्या है ? बगुला कहाँ है? तुम यहाँ कैसे ? यह गर्दन कैसी है ?” उन्होंने अनेक प्रश्न केकड़े से एक साथ पूछ डाले, वे उत्तर की प्रतीक्षा बड़ी बेसब्री से करने लगे ।

केकड़े ने बगुले की कटी हुई गर्दन दिखाकर कहा, “भाईयों, यह उसी दुष्ट बगुले की गर्दन है। वह आप लोगों को ले जाकर शिला पर पटक कर मारकर खा जाया करता था। यह सब उसकी चाल थी। एक नाटक था । अब आप चिंता न करें। यहीं सुख से रहें। मैंने उस बगुले को मार कर सारा नाटक समाप्त कर दिया है। ध्यान रखो भूखे और ओछे का कभी कोई भरोसा मत करना ।”

शिक्षा:- इस कहानी “Bagula Bhagat ki Kahani – जब बगुला बना भगत, हिंदी कहानी” से हमे यह शिक्षा मिलती है कि कभी भी किसी पर आँख बंद करके भरोसा नहीं करना चाहिए । अक्सर ही वही लोग हमे धोखा देते है जिनपर हम भरोसा करते है ।

4 Dosto ki Dosti ki Kahani – चार पक्के दोस्तों की कहानी

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4 Dosto ki Dosti ki Kahani
4 Dosto ki Dosti ki Kahani

दोस्तों सच्चे मित्र सच में किस्मतवालो को ही मिलते है, जी हाँ आज मैं आपके लिए दोस्तों से जुडी हुई एक रोचक कहानी लेकर आया हूँ कहानी का शीर्षक है “4 Dosto ki Dosti ki Kahani – चार पक्के दोस्तों की कहानी”, यह कहानी दोस्ती पर आधारित है

किसी ने सही कहा है सच्चे मित्र की पहचान विपत्तिकाल में ही होती है कि वह विपत्ति में आपका साथ देगा या पीठ दिखाकर भाग जायेगा कहानी में 4 दोस्तों होते है यह कहानी 4 पक्के दोस्तों की है जो विपत्ति में भी एक दुसरे का सदा साथ देते है लेकिन कैसे चलिए कहानी में आगे बढ़ते है और जानते है वह एक दुसरे का साथ किस प्रकार देते है

4 Dosto ki Dosti ki Kahani – चार पक्के दोस्तों की कहानी

एक वन में एक कौआ, एक कछुआ, एक चूहा और एक हिरन चारों आपस में बड़े प्रेम से रहते थे। चारों में पक्की मित्रता थी। चारों एक दूसरे के सुख-दुःख में सहायता किया करते थे। चारों सुख-पूर्वक जंगल में घूमते, खाते, खेलते आनन्द के साथ जी रहे थे। उनका जीवन सब प्रकार से सुखी था। मित्रता की परख तो आपत्ति काल में ही होती है । 4 Dosto ki Dosti ki Kahani

संत तुलसी दास जी ने रामचरित मानस में ठीक ही लिखा है :-

“धीरंज धरम मित्र अरु नारी ।
आपत काल परखिए चारी ।।

” एक दिन अचानक हिरन दौड़ा उन तीनों के पास आया और बोला, “मित्रो ! एक शिकारी मेरा पीछा कर रहा है। मेरी रक्षा करो ।”

यह सुन कौआ तुरन्त पेड़ पर उड़कर जा बैठा और इधर-उधर देखने लगा । कौए ने देखा कि शिकारी  दूसरी दिशा में जा रहा है। उसने हिरन से कहा, “अब डरने की कोई बात नहीं है। तुम निडर होकर घूमो । शिकारी दूसरी दिशा में दूर निकल गया है । ” चारों तालाब के किनारे वृक्ष की छाया में बैठे घंटों बातें करते रहे ।

कुछ दिनों के बाद जब कछुआ, चूहा और कौआ बैठे बातें कर रहे थे, तो शाम हो गई। पर हिरन नहीं आया। अंधेरा होने पर उन तीनों को बड़ी चिन्ता सताने लगी। उन्होंने सोचा, “लगता है हिरन शिकारी  के जाल में कहीं फँस गया है या शेर, चीते ने जंगल में उस पर हमला तो नहीं कर दिया ।” 4 Dosto ki Dosti ki Kahani

वे तरह-तरह की शंकाएँ करने लगे । ऐसा ही विचार प्रायः ऐसे अवसरों पर हमारे मन में भी उठते हैं ।

यह सुन कछुये ने कौवे से कहा, “भैया, तू जल्दी से उड़कर हिरन का पता लगा ।” कौवे की दृष्टि बड़ी तेज़ होती है । उसने देखा कि हिरन कुछ दूर पर शिकारी  के फैलाए जाल में फँसा पड़ा है। कौआ उड़ कर हिरन के पास गया। हिरन की दशा देख कौआ रो पड़ा ।

हिरन बोला, “मित्र, अब मेरी मौत पास खड़ी है। सबसे कहना मेरी भूल क्षमा करें। मैं अब तुम सबसे कभी नहीं मिल सकूँगा । शिकारी कल प्रातः मुझे मार डालेगा। वह मेरी खाल बाज़ार में बेच कर धन कमायेगा ।”

कौआ बोला, “दोस्त, हिम्मत से काम लो । निराश मत हो ओ । हमारा मित्र चूहा अभी आकर, अपने पैने दाँतों से जाल काट कर तुम्हें मुक्त कर देगा। मैं अभी चूहे को बुलाकर यहाँ लाता हूँ ।

थोड़ी ही देर में कौआ, चूहे को लेकर वहाँ आ पहुँचा । उसने अपने पैने दाँतों से जाल कुतर डाला। उसी समय कहीं से वहाँ कछुआ भी आ पहुँचा ।

4 Dosto ki Dosti ki Kahani कौवे ने कछुए को देखकर कहा, ” मित्र, तुमने यहाँ आकर अच्छा नहीं किया। वापिस लौट जाओ। शिकारी आ गया तो संकट में पड़ जाओगे।”

चूहा इस समय तक जाल काट चुका था। तभी आचानक शिकारी वहाँ आ पहुँचा । हिरन भाग खड़ा हुआ। चूहा वहीं बिल में छिप गया । कौआ पेड़ पर जा पहुँचा। पर शिकारी ने कछुए को धीरे-धीरे जाते हुए देखा । उसने बढ़कर उसे ही पकड़ लिया और कहने लगा, “हिरन तो भाग गया । आज कछुए को ही खा कर परिवार का पेट पालूँगा

शिकारी ने कछुए को पकड़ कर जाल में बाँध कन्धे पर लटका लिया । वह घर की ओर चल पड़ा ।

उधर इन तीनों मित्रों ने कछुए को छुड़ाने की योजना बनाई । उन्होंने तय किया कि आगे जाकर हिरन मरा हुआ-सा शिकारी के मार्ग में लेट जाए ।

कौआ हिरन के ऊपर बैठ कर चोंच मारने लगे । यह देख शिकारी  हिरन को उठाने अवश्य आयेगा । इतने में चूहा कछुए को जाल से मुक्त कर देगा । कछुआ समीप के तालाव में उतर जायेगा । हिरन भाग जायेगा । चूहा बिल में चला जायेगा और कौआ उड़ कर पेड़ पर जा बैठेगा। ऐसे सब बच लेंगे ।”

योजना पक्की थी । उन सभी ने वैसा ही किया । हिरन आगे जाकर एक तालाब के समीप मरा जैसा लेट गया। कौआ उस हिरन के ऊपर बैठकर चोंच मारने लगा। चूहा घात लगा कर छिप कर बैठ गया। तीनों चतुर मित्र शिकारी  के आने की राह देखने लगे । 4 Dosto ki Dosti ki Kahani

थोड़ी ही देर में शिकारी उधर से निकला। कछुआ जाल में बँधा उसके कन्धे पर लटका था । शिकारी  हिरन को भूमि पर पड़ा देख कर बोला, “अरे, लो हिरन तो स्वयं ही मर गया ।” यह सोच उसने क को जमीन पर रक्खा और हिरन को लेने उसकी ओर आगे बढ़ा।

चूहे ने आनन-फानन जाल काट डाला । कछुए ने तालाव में छलाँग लगा दी । कौआ उड़ कर काँव-काँव कर पेड़ पर जा बैठा। हिरन कुछ ही पल में कुलाचें भरता हुआ आँखों से ओझल हो गया ।

शिकारी ने लौट कर पीछे देखा। उसने अपना सिर पीट लिया। वहाँ न कछुआ था और न हिरन । वह दुःखी हो अपनी मूर्खता पर पछताने और रोने लगा ।

शिकारी  उन चारों की चाल समझ गया। वे चारों मित्र एक गुप्त एवं सुरक्षित स्थान पर एकत्र हुए। अपनी मित्रता के बल पर ही उन चारों ने शिकारी से छुटकारा पाया। सच है, मित्रता में बड़ी शक्ति है।” पर मित्रता पक्की और सच्ची होनी चाहिए । 

शिक्षा:- इस कहानी “4 Dosto ki Dosti ki Kahani – चार पक्के दोस्तों की कहानी” से हमे यह शिक्षा मिलती है कि हमे सदा सच्चे दोस्त बनाने चाहिए जो कठिन समय में भी हमारा साथ दे और साथ रहे। 

Chide ka Gaon walo se Badla – जब चिडे ने लिया गाँव वालो से बदला

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Chide ka Gaon walo se Badla
Chide ka Gaon walo se Badla

धरती पर रहने वाले हर जीवित प्राणी का धरती पर उतना ही अधिकार है जितना मानव का है लेकिन मानव यह भूल गया है और स्वयं को सबका स्वामी समझता है कुछ ऐसा ही आज की कहानी से जुड़ा हुआ एक प्रसंग मैं आपको बताने वाला हूँ जिसका शीर्षक है Chide ka Gaon walo se Badla – जब चिडे ने लिया गाँव वालो से बदला

दोस्तों ईश्वर ने इस दुनिया में सभी जीवित प्राणियों जैसे पेड़-पौधे, जीव-जन्तु और साथ ही मानव हर किसी को जन्म दिया है साथ ही जिस तरह मानव धरती पर रह रहा है उसी प्रकार हर प्राणी को रहने का अधिकार दिया है लेकिन मानव ने प्रकृति का संतुलन बिगाड़ दिया है और बेजुबानो का शिकार करना और उनके अंत का कारण बन गया है

कहानी एक गाँव के लोगो और चिडे की है। कहानी में कुछ ऐसा होता है कि एक चिड़िया और चिड़ा एक पेड़ पर रहते है लेकिन एक दिन एक गाँव के लोगो ने चिड़िया को घेर कर पकड़ लिया और मार डाला, लेकिन फिर चिडे ने अपने जंगल के कुछ दोस्तों के साथ मिलकर पुरे गाँव के लोगो से उसकी मौत का बदला कैसे लिया चलिए कहानी में आगे बढ़ते है और जानते है

Chide ka Gaon walo se Badla – जब चिडे ने लिया गाँव वालो से बदला

किसी पेड़ पर एक चिड़िया और चिड़ा रहते थे। वे दोनों प्रेम-पूर्वक मिलकर दिन बिता रहे थे। दोनों हमेशा साथ-साथ उड़ते, घूमते, खाते-पीते और दूर-दूर तक सैर किया करते थे। उन्हें किसी बात की कोई चिन्ता न थी। उनका जीवन सब प्रकार से सुखमय था ।

एक दिन अचानक गाँव के लोगों ने चिड़िया को घेर कर पकड़ लिया और मार डाला । चिड़ा किसी प्रकार बच कर निकल गया। बेचारा, अकेला क्या करता । वह बहुत दुःखी था। उसे गाँव वालों पर बड़ा गुस्सा आ रहा था। वह किसी प्रकार उनसे चिड़िया की मौत का बदला लेना चाहता था। उसे दिन-रात इसी बात की चिंता लगी रहती थी। उसका सुख चैन नष्ट हो चुका था । Chide ka Gaon walo se Badla

इसी उधेड़बुन में वह कई दिन लगा रहा। अंत में उसने एक- छोटी-सी सींकों की गाड़ी तैयार की और उसने उसमें दो चूहों को जोता । वह उस गाड़ी में बैठकर घूमने निकल पड़ा। मार्ग में उसे शेर मिला । शेर जंगल का राजा माना जाता है। शेर ने देखा कि चिड़ा बड़ी शान से अपनी छोटी सी गाड़ी में बैठा कहीं जा रहा है। शेर ने पूछा, “चिड़े, कहाँ जा रहे हो ?” चिड़ा बोला।

“सीको की गाड़ी, दो चूहे जुते जाएँ ।
बड़े गाँव गिलगइया मारी, दाँव लेने जाएँ”।।

“चलो तुम भी चलो। शेर भी गाड़ी में बैठ कर चल दिया। गाँव के लोग अपनी भाषा में चिड़िया को ‘गिलगइया’ कहते हैं ।

आगे चलने पर चिड़ा को बिच्छू दिखाई दिया । बिच्छू को छोटी सी गाड़ी बड़ी अच्छी लगी । उसने पूछा, “तुम कहाँ जा रहे हो ?” उसकी इच्छा भी गाड़ी में बैठने की थी। चिड़ा बोल उठा।

“सीको की गाड़ी, दो चूहे जुते जाएँ ।
बड़े गाँव गिलगइया मारी, दाँव लेने जाएँ”।।

“बिच्छू बोला” हम भी चलें । “चिड़ा तो चाहता ही था कि बिच्छू हमारे साथ चले । उसने बिच्छू को भी बैठा लिया। वे बराबर चले जा रहे थे।

मार्ग में उन्हें नदी मिली। नदी कल-कल-छल छल करती बह रही थी । नदी ने देखा कि छोटी सुन्दर-सी गाड़ी में चिड़ा, शेर और बिच्छू शान से बैठे जा रहे हैं। नदी ने टेर लगाई, “ओ चिड़ा, कहाँ जा रहे हो, ठहरो!” चिड़ा ने उसे अपनी बात बताने के लिए कहा। Chide ka Gaon walo se Badla

“सीको की गाड़ी, दो चूहे जुते जाएँ ।
बड़े गाँव गिलगइया मारी, दाँव लेने जाएँ”।।

“नदी बोली, ” हमें भी ले चलो।” चिड़ा ने झट-पट उसे भी गाड़ी में चढ़ा लिया। गाड़ी आगे दौड़ने लगी। आगे बढ़ने पर उन्हें रिड़किया मिली। इसे कुछ लोग फाख्ता भी कहते हैं। यह अति प्रातः मधुर आवाज करती है। इसके पंखों के फड़फड़ाने की आवाज भी बड़े जार की होती है।

पिड़किया ने जब छोटी सी सुन्दर गाड़ी पर शेर, बिच्छू, नदी और चिड़ा को बैठे देखा, उसकी भी इच्छा गाड़ी में बैठने की हुई। वह बोली, “भाई, आप इतने सारे लोग गाड़ी में बैठ कर कहाँ जा रहे हो ? हमें भी ले चलो ना।” चिड़े ने उसी स्वर में कहा।

“सीको की गाड़ी, दो चूहे जुते जाएँ ।
बड़े गाँव गिलगइया मारी, दाँव लेने जाएँ”।।

“चिड़े से कहकर पिंड़किया भी गाड़ी में बैठ गई। अब गाड़ी लगभग गाँव के समीप आ चुकी थी। सूरज छिपने को था। अँधेरा घिर रहा था। गाड़ी रुकी। नदी निकल कर गाँव के चारों और बहने लगी । इस समय तक रात्रि का समय हो आया था।

Chide ka Gaon walo se Badla गाँव के लोग खा-पीकर सोने जा चुके थे। कुछ सो भी चुके थे, कुछ लोग सोने वाले थे। शेर, चिड़ा, बिच्छू और पिड़किया नीचे उतर कर गाँव में अन्दर मुखिया के घर में घुसे। शेर दरवाजे पर जम कर बैठ गया । बिच्छू दिए पर बैठ गया। यह वही घर था जहाँ मुखिया आदि ने चिड़ा और चिड़िया को घेरा था, यहीं चिड़िया को मार डाला गया था ।

चिड़े ने पिड़किया को उड़ने का इशारा किया। पिड़किया बड़े ज़ोर से पंख फड़फड़ा कर उड़ी गृहस्वामी मुखिया बड़ा कर उठ बैठा। उसने यह देखने को कि मामला क्या है ? यह आवाज किसकी है? दिया हाथ से उठाया, वैसे ही बिच्छू ने पूरा डंक मुखिया के हाथ में चुभो दिया। गृह स्वामी मुखिया चिल्ला कर द्वार की ओर भागा।

द्वार पर शेर बैठा था। शेर ने उसे दबोच कर चीर डाला। उसकी चीख सुन कर सारा गाँव जाग गया। भगदड़ मच गई। गाँव के लोग अँधेरे के कारण भागने पर नदी में डूब गए। इस प्रकार चिड़े ने अपनी चिड़िया की हत्या का बदला चुका लिया। वे सब उसी गाड़ी में बैठ कर आनन्द मनाते लौट पड़े। मार्ग में चिड़े ने सब को एक-एक कर यथा स्थान उतार दिया।

चिड़ा अब खुश था। वह अकेला गाड़ी पर बैठा गा रहा था. – “सींकों की गाड़ी मेरी, चूहे जोत लाए । चिड़िया का बदला लेके, खुशी खुशी आए ।। किसी दुखिया को अब कोई न सताए । एक एक ग्यारह होते, जब मिल जाए ।। “

शिक्षा:- इस कहानी “Chide ka Gaon walo se Badla – जब चिडे ने लिया गाँव वालो से बदला” से हमे यह शिक्षा मिलती ही कि हमे कभी किसी को कमजोर नही समझना चाहिए और न ही किसी को परेशान करना चाहिए

Brahman or Tote ki Kahani – जब विद्वान ब्राह्मण ने तोते को ज्ञान दिया

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Brahman or Tote ki Kahani
Brahman or Tote ki Kahani

दोस्तों कहते है संगती का असर सीधा आपके मस्तिष्क पर असर करता है जिससे आप यदि अच्छी संगती में है तो वह आपके लिए अच्छा है लेकिन यदि आप किसी गलत संगती में रहते है तो वह आपके लिए हानिकारक सिद्ध होता है कुछ ऐसा ही आज की कहानी का शीर्षक है “Brahman or Tote ki Kahani – जब विद्वान ब्राह्मण ने तोते को ज्ञान दिया”

आज की हमारी कहानी एक तोते और एक ब्राह्मण पर आधारित है कहानी के अनुसार एक ब्राह्मण के पास एक तोता होता है वह ब्राह्मण उस तोते को बहुत अच्छी-अच्छी बातें सिखाता है साथ ही उसे शिकारी से बचने के लिए एक ख़ास मन्त्र सिखाता है जिसे सुनकर शिकारी तोते का शिकार नहीं कर पाते है तो आखिर वह मन्त्र क्या है चलिए कहानी में आगे बढ़ते है और जानते है

Brahman or Tote ki Kahani – जब विद्वान ब्राह्मण ने तोते को ज्ञान दिया

किसी विद्वान ब्राह्मण ने एक बार एक तोता पाला । वह तोते को दिन भर पिंजड़े में बन्द रखता था । वह उसे वहीं भोजन देता, खिलाता और उससे अपना मन बहलाता था । तोता कभी-कभी आकाश में उड़ते हुए पक्षियों को देखकर पिंजड़े में से निकलने की कोशिश करता पर बेचारा विवश हो मन मारकर वहीं पिंजड़े में ही इधर-उधर घूम कर रह जाता । वह पिंजड़े से बाहर नहीं आ पाता था ।

एक दिन उस विद्वान व्यक्ति को उसकी दशा देख कर दया आ गई। वह तोते को छोड़ने को तैयार हो गया, यकायक उसके मन में विचार आया कि ऐसे तो फिर व्याध इसे पकड़ लेगा । अतः इसे सिखा-पढ़ा कर छोड़ना चाहिए ताकि फिर यह कभी शिकारी के जाल में न फँस सके। Brahman or Tote ki Kahani

बस उस दिन से उस विद्वान व्यक्ति ने तोते को सिखाना-पढ़ाना शुरू कर दिया । तोता कुछ ही दिनों में सिखाई गई सारी बात सीख गया। वह उस विद्वान ब्राह्मण की सिखाई गई सारी बात वह तोता जोर-जोर से दोहराने लगा। जब उस विद्वान ब्राह्मण को पूरा विश्वास हो गया कि अब तोता अपनी बात ठीक से बोलने लगा है, तब ब्राह्मण ने उसका पिंजड़ा खोल दिया ।

तोता उड़कर पेड़ पर जाकर बैठ गया । वह याद किये पाठ बोलने लगा “शिकारी आयेगा, जाल फैलायेगा दाना डालेगा, हमें फँसायेगा, पर हम नहीं फसेंगे ।” यह देख, सुन कर ब्राह्मण बहुत प्रसन्न हुआ । तोता उड़ कर जंगल में चला गया। वह वहाँ अपने तोतों के झुण्ड में जाकर मिल गया । तोने ने वन में पेड़ पर बैठ कर अपना याद किया हुआ पाठ दोहराना शुरू कर दिया ।

कई तोते भी अब उसके साथ वह पाठ दोहराने लगे। कुछ ही दिनों में जंगल के सारे तोतों ने  यही पाठ याद कर लिया। वैसे भी तोते में सुन कर याद करने की शक्ति सब जीवो से अधिक होती है। अब तो जंगल के सभी तोते एकसाथ एक ही स्वर में यही पाठ दोहराने लगे । सारा जंगल तोतो के बोलने से गूंज उठा ।  सभी मिलकर चिल्लाने लगे “शिकारी आयेगा, जाल फैलायेगा, दाना डालेगा, हमें फँसायेगा पर हम फसेंगे नहीं ।”

Brahman or Tote ki Kahani उस वन में वहेलियों का एक बड़ा परिवार अक्सर अपने जाल फैला कर चिड़ियों को, विशेष कर तोतों को फंसाया करता था । उनकी रोजी-रोटी इन्हीं पक्षियों को बेच कर चलती थी । उनकी आय का एकमात्र यही साधन था ।

सभी वहेलिए जब वन में अपने जाल लेकर आये तो उन्होंने वहाँ सभी तोतों को पेड़ों पर बैठे यह गाते सुना- “शिकारी आयेगा, जाल फैलायेगा, दाना डालेगा, हमें फँसायेगा पर हम नहीं फँसेंगे ।” वे घबड़ा उठे, उन्होंने अपने-अपने जाल परेशान होकर अपने घर की खूँटियों पर टाँग दिए । उन्होंने सोचा कि अब जंगल के सारे पक्षी होशियार हो गए हैं। वे हमारे जाल में नहीं फसेंगे। वे सभी बड़े उदास और चिन्तित रहने लगे ।

कई दिन तक उनके घरों में चूल्हे नहीं जले, खाना नहीं पका । सभी लोग भूखे उठे और भूखे सोए उन्होंने अपने मकान गाँव आदि सब कुछ छोड़ कर दूसरे स्थान पर जाने का निश्चय कर लिया वे अपना अपना सामान बाँध कर अन्यत्र जाने की तैयारी कर ही रहे थे तभी अचानक उनके बूढ़े बाबा तीर्थ यात्रा से लौट कर आ गए। यह दृश्य देख कर वे बोले, “यह क्या हाल चाल बना रक्खा है । सब रोनी सूरत लिए कहाँ जाने की तैयारी कर रहे हैं ?”

उन्होंने बाबा को सारी बात बताई। बाबा हँस पड़े और कहने लगे, ” बेटो, तोते तो तोते ही होते हैं। वे रटना जल्दी सीख लेते हैं। उन्हें कहने दो। तुम अभी जंगल में जाकर दाना डालो और अपने जाल फैलाओ । देखो, तोते अवश्य आकर फँसेंगे। वे जंगल में गए। उन्होंने दाने बिखेरे, जाल फैलाए । Brahman or Tote ki Kahani

धीरे-धीरे एक एक कर के तोते आने और फँसने लगे । तोते बोलते जाते थे उतरते जाते थे, और जाल में फँसते जाते थे । वहेलियों ने जाल खींचा तोते शिकारी के जाल में फंस गए पर वे सब अभी भी बराबर यही बात बोले जा रहे थे।

“शिकारी आयेगा, जाल फैलायेगा, दाना डालेगा, हमें फँसायेगा पर हम नहीं फँसेंगे।” सभी बहेलिए बहुत खुश हुए आज कई दिन बाद उन्होंने एक साथ सभी ने कई-कई तोते पकड़े थे। उन्हें ब्राह्मण की बताई हुई बात याद आ रही थी” कि तोते तो तोते ही होते हैं। उन्हें रटने की आदत होती है। वे रटी बात बहुत जल्दी ही बोलना सीख लेते हैं।” साथ ही उन्हें अपनी मूर्खता पर हँसी भी आ रही थी सच है- ‘हमें आनी बुद्धि का उपयोग करना चाहिए।

शिक्षा: आज की कहानी “Brahman or Tote ki Kahani – जब विद्वान ब्राह्मण ने तोते को ज्ञान दिया” से हमे यह शिक्षा मिलती है कि हमे तोते की तरह एक बात ही रटनी नही चाहिए, समय और परिस्तिथि देखकर ही हमे बोलना चाहिए

Ajnabi Par Bharosa Na Karo – अजनबी पर कभी भरोसा न करो

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Ajnabi Par Bharosa Na Karo
Ajnabi Par Bharosa Na Karo

दोस्तों हमे अक्सर ही बड़े बुजुर्ग कहानियो के माध्यम से तरह-तरह की सीख और संस्कार देते आयें है और वह सीख हमे हमारे जीवन में बहुत लाभदायक सिद्ध होती हैकुछ ऐसा ही आज की कहानी में भी है जिसका शीर्षक है Ajnabi Par Bharosa Na Karo – अजनबी पर कभी भरोसा न करो कहानी में कुछ ऐसा होता है जिससे हमे भी कुछ सीख मिलेगी

कहानी के अनुसार एक बगुले और साँप में काफी गहरी मित्रता होती है, वह लोग आपस में बहुत अच्छे से मिलकर रहते थे और समय समय पर एक दुसरे की सहायता भी करते थे लेकिन एक दिन एक चालक बिलौटा वहां आता है और बगुले और साँप से उनके साथ वहाँ उनके साथ ही रहने की विनती करता है, लेकिन साँप किसी अजनबी को शरण देने से मना करता है लेकिन ऐसा क्या होता है जो सांप ऐसा करने को मना करता है चलिए कहानी में आगे बढ़ते है और जानते है

Ajnabi Par Bharosa Na Karo – अजनबी पर कभी भरोसा न करो

किसी वन में बरगद का एक बड़ा विशाल वृक्ष था। उस वृक्ष के ऊपर बगुलों का झुण्ड रहता था । उसी वृक्ष की जड़ में बिल बना कर एक साँप भी रहता था । दोनों में बड़ी मित्रता थी । जब बगुले भोजन की खोज में नदी के किनारे मछली खाने व पकड़ने जाते तो सौंप उनके बच्चों की रखवाली किया करता था। समय पड़ने पर वे एक दूसरे की सहायता भी किया करते थे ।

धीरे-धीरे जैसे-जैसे समय बीतता गया उन दोनों की मित्रता भी गहरी होती गई । सायंकाल जब बगुले नदी के तट पर से लौटकर अपने बच्चों को भोजन कराते तो बच्चे चीं-चीं करके खुश होते । साँप भी उनकी आवाज़ सुन कर बिल से बाहर निकल आया करता और जो मछलियाँ नीचे गिर जातीं, वह उन्हें खा कर अपना पेट भरता था। इन दोनों का काम इस प्रकार चल जाता था । Ajnabi Par Bharosa Na Karo

साँप बूढ़ा हो चला था। वह इधर-उधर आ जान सकता था। उसे वहीं घर बैठे भोजन मिल जाता था। अतः वह निश्चिन्त था । दोनों बड़े आनन्द से सुख और शान्ति के साथ जीवन बिता रहे थे। किसी को एक दूसरे से कोई शिकायत थी और न परेशानी । दोनों एक दूसरे के काम आया करते थे।

अचानक वहाँ उसी जगह कहीं से एक विलौटा आ धमका। बिलौटा बगुलों से बोला, “मैं परदेशी हूँ अकेला ही है मेरा कोई 1 सहारा नहीं है, अगर आप कहें तो मैं भी यहाँ इसी पेड़ पर रहने लगें ।” बगुलों को बिलौटे की दशा देखकर और उसकी करुणा भरी बातें सुन कर दया आ गई । वे बोले, “भाई, तुम यहाँ निर्भय होकर रहो पर ध्यान रखना कि हमारे बच्चे अभी छोटे हैं। उन्हें कोई किसी प्रकार की हानि न हो।”

साँप ने बगुलों से कहा, “नीति यह कहती है कि बिना जाति, कुल और गोत्र का पता लगाए किसी अपरिचित व्यक्ति को अपने घर आश्रय नहीं देना चाहिए ।” पर बगुले न माने। उन्होंने साँप को बात सुनी-अनसुनी कर दी। वे कहने लगे, “घर आए अतिथि की सेवा करना उसकी सहायता करना हमारा धर्म है । तुम हमारा धर्म पालन में बाधा न डालो।” ऐसा कहकर उन्होंने उस बिलौटे को अपने साथ पेड़ पर रहने की अनुमति दे दी ।

बिलौटा अब बड़े मजे से वहाँ रहने लगा। उसे मछलियाँ खाने का शौक था। उसे भी वहाँ पेट भर मछलियाँ मिल ही जाती थीं। उधर धीरे-धीरे बगुलों के बच्चे भी बड़े होने लगे। उनकी भूख भी बढ़ गई। अब बिलौटे को पेट भर मछलियाँ खाने को नहीं मिल पाती थीं। बिलौटे ने सोचा, मुझे यहाँ रहते काफी समय हो गया है। बगुलों को मेरा विश्वास भी हो गया है। अगर मैं अब बगुलों के बच्चों को खा डालूँ तो मेरे ऊपर वे आसानी से शक नहीं करेंगे । Ajnabi Par Bharosa Na Karo

यही सोच कर बिलौटे ने छिपकर एक-एक कर धीरे धीरे बगुलो के बच्चों को खाना शुरू कर दिया। इस प्रकार अब बिलौटा बगुलों के बच्चों को खाकर अपना पेट भरने लगा। वहाँ धीरे-धीरे बगुलों के बच्चों की संख्या कम होने लगी। बगुलों को शक हो गया कि उनके बच्चों को कोई खा रहा है। वे उस का पता लगाने का प्रयत्न करने लगे।

बिलौटा बहुत चालाक था। वह बगुलों के बच्चों को खाने के बाद उनकी हड्डियाँ और पंख नीचे साँप के बिल के पास ही डाल दिया करता था ताकि शक साँप पर ही किया जा सके, उस पर नहीं । वह स्वयं को हमेशा साफ बचाए रखता था। साँप के बिल के समीप हड्डियों और पंखों का अच्छा खासा देर लग गया था ।

बगुले जब इधर-उधर उड़-उड़ कर यह जानने की कोशिश कर रहे थे कि उनके बच्चों को कौन खाता है; उनकी दृष्टि पेड़ के नीचे बिल के मुँह पर गई । उन्होंने वहाँ साँप के बिल के समीप पंखों और हड्डियों का बहुत बड़ा ढेर देखा । उनका शक पक्का हो गया कि हो न हो यह काम साँप का ही है। उन्हें पक्का विश्वास हो गया कि साँप ने ही उनके बच्चों को खाया है तभी तो उसके बिल के पास इतने पंख और हड्डियाँ इकट्ठी हैं ।

Ajnabi Par Bharosa Na Karo उन तमाम बगुलों ने मिलकर एक साथ साँप पर हमला बोल दिया। साँप बूढ़ा था । उससे चला भी नहीं जाता था। बेचारा जब तक कुछ कहे, बोले उससे पहिले ही बगुलों ने साँप के टुकड़े-टुकड़ कर डाले। सौंप वहीं मर गया। पर बगुलों का मन अभी भी शान्त न हुआ।

उन्होंने अब बिलौटे की खोज की। पर बिलौटा उन्हें कहीं दिखाई नहीं दिया । बगुलों का क्रोध देख कर वह वहाँ से नौ दो ग्यारह हो चुका था। बिलौटा समझ गया कि साँप को मारने के बाद बगुले मुझे ही मारेंगे। मौत के डर से बिलौटा बहुत दूर चला गया था । इस कारण वह बच गया । अगर कहीं बिलौटा बगुलों के हाथ आ जाता तो उसकी हड्डी-पसली एक भी साबुत न बचती

अब बगुलों को अपनी भूल का पता चला। एक बड़े और अनुभवी बगुले ने कहा, “हमने साँप का कहना न माना इसी कारण हमें यह बुरा दिन आज देखना पड़ रहा है। आज हमें पछताना पड़ रहा है । हमने अपने बच्चे भी खोए और विश्वासपात्र मित्र भी ।” किसी ने सच कहा है, ” अपरिचित को कभी आश्रय न दो ।”

शिक्षा: इस “Ajnabi Par Bharosa Na Karo – अजनबी पर कभी भरोसा न करो कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती है कि हमे कभी भी किसी अजनबी पर जल्दी भरोसा नहीं करना चाहिए और हमेशा ही किसी कार्य करने से पहले अपने करीबी लोगो से राय जरुर लेनी चाहिए