दोस्तों अक्सर हमारे बढे-बूढ़े हमे अच्छी अच्छी सीख देते है और समझाते है कि हमे कभी भी किसी पर आँख बंद करके भरोसा नहीं करना चाहिए । अक्सर ही वही लोग हमे धोखा देते है जिनपर हम भरोसा करते है । आज की हमारी कहानी का शीर्षक भी कुछ ऐसा ही है “Bagula Bhagat ki Kahani – जब बगुला बना भगत, हिंदी कहानी”
कहानी के अनुसार एक बगुला स्वयं को भगत बताकर छोटी छोटी और प्यारी सी मछलियों को बहला-फुसलाकर तालाब से दूर एक पत्थर पर पटक कर उन्हें मार कर खा जाया करता था लेकिन आखी कैसे एक दिन एक केकड़े ने उस बगुले भगत को मजा चखाया चलिए कहानी में आगे बढ़ते है और जानते है
Bagula Bhagat ki Kahani – जब बगुला बना भगत, हिंदी कहानी
किसी समय एक बड़ा विशाल सरोवर था । उसमें बहुत-सी छोटी-बड़ी मछलियाँ रहती थीं। वहाँ उस सरोवर पर प्रतिदिन एक बगुला मछली खाने आया करता था। वह कुछ समय बीतने पर बूढ़ा हो गया। वह दौड़-दौड़ कर अब मछली नहीं पकड़ सकता था । Bagula Bhagat ki Kahani
एक दिन भूख से परेशान जब वह अपने बूढ़ेपन पर आँसू बहा रहा था, तभी एक केकड़ा उधर आया । केकड़े ने पूछा, “भाई बगुले तुम इस तरह दुःखी होकर क्यों रो रहे हो ?”
बगुला बोला, “मुझे मछलियाँ मारते और खाते बहुत दिन हो गए। मुझे अब ज्ञान हो गया है। मैं अब मछलियाँ नहीं मारता । मुझे अपने किए गए बुरे कामों का दुःख हो रहा है । इसीलिए रो रहा हूँ।”
बगुले ने बातों ही बातों में केकड़े को स्वप्न की बात भी कह दी । बगुले ने अपने स्वप्न में देखा तो कुछ नहीं था पर बात गड़ ली थी कि उसने देखा कि आने वाले कुछ ही दिनों में अकाल पड़ेगा और यह तालाब भी सुख जायेगा। बारह वर्ष तक धरती पर वर्षा नहीं होगी । तालाब के सूख जाने से सब जलचर मर जायेंगे ।
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केकड़े ने यह बात मछलियों को बताई, सब मछलियाँ इकट्ठी होकर बगुले को घेर कर बोली, “मामा, आप बताएँ कि हम क्या करें ।” बगुला मीठी वाणी में बोला, “मैं यहीं इसी सरोवर में जन्मा, पला और बड़ा हुआ हूँ। मुझे इस सरोवर के जलचरों से स्वभाविक प्यार हो गया है। इसीलिए मैं चिन्तित हूँ।”
बगुले की मीठी प्रेम भरी बातें सुन कर अन्य जलचर भी वहाँ आ गए। सब कहने लगे, “मामा, हम आपकी शरण हैं। अब आप ही हमें कोई उपाय बताइए कि हम क्या करें । ”
चालाक बगुला बोला, “यहाँ से दूर एक ऐसा महासरोवर है जिसमें अथाह पानी है, जो सैकड़ों सालों तक नहीं सूख सकता। यदि आप लोग चाहें तो मैं कुछ ही दिनों में आप सभी को वहाँ पहुँचा सकता हूँ। वहाँ आप सब चैन से रहेंगे।” Bagula Bhagat ki Kahani
इतना सुनना था कि सभी जलकर मछलियाँ, केकड़े, कछुआ आदि चिल्ला पड़े, “मामा, पहिले हमें, पहिले हमें।” वे खड़े होकर बड़ी देर तक मामा बगुला को घेरे रहे। बगुले की मन चीती हो गई ।
अब बगुला नित्य बारी-बारी से मछलियों को पीठ पर लाद ले जाता और दूर एक पत्थर पर पटक कर मार कर उन्हें खाने लगा। उसे ऐसा करते कई दिन हो गए। बगुला अब खुश था। मछलियाँ आदि सभी जलचर चिंता मुक्त थे ।
एक दिन केकड़ा आकर बगुले से बोला, “मामा मेरी आपसे भेंट सबसे पहिले हुई थी। अब मेरी बारी कब आयगी ! आप मुझे वहाँ कब ले चलेंगे ।”
बगुले ने मन ही मन सोचा ठीक है, बहुत दिनों से मछलियाँ खाते-खाते जी ऊब गया है। केकड़े का माँस चटनी का काम करेगा। आज मैं इसी को खाऊँगा। ऐसा निश्चय कर वह बोला, “अच्छा, चलो आज मैं तुम्हीं को पहुँचा देता हूँ ।” इतना कह कर बगुले ने केकड़े को अपनी गर्दन पर चढ़ा लिया ।
बगुला तेज चाल से उड़ा चला जा रहा था। केकड़े को दूर पर एक शिला दिखाई दी जहाँ मछलियों की हड्डियों का ढेर पड़ा था। यहाँ उसे दूर-दूर तक सरोवर अथवा पानी कहीं भी दिखाई न दिया । वह सब समझ गया ।
Bagula Bhagat ki Kahani वह बात बना कर बोला, “मामा, सरोवर अभी और कितनी दूर है ? आप मेरे बोझ से थक गए होंगे। अच्छा रहे आप थोड़ी देर रुक कर आराम कर लें।”
बगुले ने सोचा अब इसे सच बताने में हानि ही क्या है ? बचकर जायेगा कहाँ ? है तो मेरे कब्जे में ही । सो वह बोला, “बेटा, सरोवर भूल जाओ। यह तो मेरी चाल थी। तुम्हारी मौत भी अब पास ही है। मैं तुम्हें भी आगे शिला पर पटक कर मार कर खा जाऊँगा ।”
बगुले की बात अभी पूरी हो ही पाई थी कि केकड़े ने अपने पैने दाँत बगुले की कोमल गर्दन में गड़ा दिए, बगुला वहीं मर कर ढेर हो गया। उसकी गर्दन कट गई थी। केकड़ा उसी कटी गर्दन को लेकर धीरे-धीरे अपने पुराने सरोवर के किनारे पहुँच गया। उसने देखा वहाँ कई जलचर बगुले की प्रतीक्षा में खड़े थे ।
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केकड़े को देख कर वे उसके पास आए और बगुले की कटी हुई गर्दन को देख कर पूछने लगे, “भाई, यह क्या है ? बगुला कहाँ है? तुम यहाँ कैसे ? यह गर्दन कैसी है ?” उन्होंने अनेक प्रश्न केकड़े से एक साथ पूछ डाले, वे उत्तर की प्रतीक्षा बड़ी बेसब्री से करने लगे ।
केकड़े ने बगुले की कटी हुई गर्दन दिखाकर कहा, “भाईयों, यह उसी दुष्ट बगुले की गर्दन है। वह आप लोगों को ले जाकर शिला पर पटक कर मारकर खा जाया करता था। यह सब उसकी चाल थी। एक नाटक था । अब आप चिंता न करें। यहीं सुख से रहें। मैंने उस बगुले को मार कर सारा नाटक समाप्त कर दिया है। ध्यान रखो भूखे और ओछे का कभी कोई भरोसा मत करना ।”
शिक्षा:- इस कहानी “Bagula Bhagat ki Kahani – जब बगुला बना भगत, हिंदी कहानी” से हमे यह शिक्षा मिलती है कि कभी भी किसी पर आँख बंद करके भरोसा नहीं करना चाहिए । अक्सर ही वही लोग हमे धोखा देते है जिनपर हम भरोसा करते है ।