Apna Kaam Swayam Kare – जब पंडित ईश्वरचंद्र विद्यासागर बने थे कुली

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Apna Kaam Swayam Kare
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भारत भूमि पर अनेको महापुरुषो ने जन्म लिया है और अपनी जीवनी से जन मानस को कई महत्वपूर्ण सन्देश दिए है जो हर व्यक्ति के जीवन में काफी कारगर सिद्ध हुए है| आज हम भी ऐसे ही एक महापुरुष के बारे में बात करेंगे जिन्होंने यह सन्देश दिया कि व्यक्ति को अपना कार्य करने में कभी शर्म नही करनी चाहिए वो महापुरुष थे पंडित ईश्वरचंद्र विद्यासागरApna Kaam Swayam Kare

व्यक्ति का जीवन सदा कार्य करने और दुसरो की मदद के लिए सार्थक सिद्ध हो सकता है लेकिन उच्च विचार और सरल स्वभाव जैसे गुण भी हर व्यक्ति के अंदर नही आ सकते तो चलिए अब हम अपनी कहानी की तरफ बढ़ते है और जानते है कि किस प्रकार से और क्या कारण था जब पंडित ईश्वरचंद्र विद्यासागर बने थे कुली ?

Apna Kaam Swayam Kare – जब पंडित ईश्वरचंद्र विद्यासागर बने थे कुली

एक बार एक ट्रेन बंगाल में एक देहाती स्टेशन पर रुकी। गाड़ी रुकते ही एक सज्जन उस ट्रेन से उतरे और उतरते के बाद थोड़ी देर इधर उधर देखने के बाद उस सजे धजे युवक ने कुली-कुली पुकारना प्रारंभ किया। युवक ने बढ़िया पतलून पहन रखा था पतलून के रंग का ही उसका कोर्ट था, सिर पर टोपी थी, गले में टाई बंधी थी और उसका बूट चम-चम चमक रहा था।

दूसरी तरफ देहात के स्टेशन कुली तो होते नहीं है बेचारा युवक बार-बार पुकारता रहा और इधर उधर हैरान होकर देखता रहा। उसी समय वहां सादे स्वच्छ कपड़े पहने एक सज्जन आए। उन्होंने युवक का सामान उतार लिया युवक ने उनको कुली समझा वह डांटते हुए बोला- “तुम लोग बड़े सुस्त होते हो, मैं कब से पुकार रहा हूँ।

उस सज्जन ने कोई उत्तर नहीं दिया। युवक के पास हाथ में ले चलने के लिए एक छोटा बक्सा (हैंडबैग) था और एक छोटा सा कपड़ो का बंडल था। उसे लेकर युवक के पीछे पीछे वे सज्जन उसके घर तक गए।

घर पहुंचकर युवक ने उन्हें देने के लिए जैसे ही पैसे निकाले लेकिन पैसा लेने के बदले वे सज्जन पीछे लौटते हुए बोले-“धन्यवाद ! युवक को बड़ा आश्चर्य हुआ यह कैसा कुली है कि वो बोझा उठाकर भी पैसा नहीं लेता और उल्टे धन्यवाद देता है? Apna Kaam Swayam Kare

उसी समय वहां उस युवक का बड़ा भाई आ गया। उसने जैसे ही उस सज्जन को देखा जो सूट बूट पहने उस युवक का सामान लेकर आये थे उस सज्जन को देखते ही उसके भाई के मुंह से निकला “अरे आप।”

जब उस युवक को पता लगा कि जिसे उसने कुली समझकर डांटा था और जो उसका सामान उठाकर उसके घर लाए थे वह दूसरे कोई नहीं थे। वह तो बंगाल के प्रसिद्ध महापुरुष और एक समाज सुधारक पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी हैं।

वह युवक लज्जा के कारण उनके चरणों में गिर पड़ा और क्षमा मांगने लगा। युवक बोला- “मुझे माफ़ कर दीजिये। आप जैसे महापुरुष के साथ मैंने इस प्रकार का अभद्र व्यवहार किया।  ईश्वर चंद्र जी ने उसे उठाया और कहा- “इसमें क्षमा मांगने की कोई बात नहीं है।

हम सब भारतवासी हैं, हमारा देश अभी गरीब है और सभी को अपना जीवन यापन करने के लिए धन की आवश्कता होती मैंने आपका सामान किसी धन के लोभ में नही उठाया बल्कि मैं सिर्फ आपकी मदद के लिए आपका सामान लेकर आया हूँ।

Apna Kaam Swayam Kare हमें अपने हाथ से अपना काम करने में लज्जा क्यों करनी। अपना काम कर लेने में तो संपन्न देशों में भी गौरव की बात मानी जाती है हमें सदा अपना काम स्वयं करना चाहिए। 

 

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