Ajnabi Par Bharosa Na Karo – अजनबी पर कभी भरोसा न करो

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Ajnabi Par Bharosa Na Karo
Ajnabi Par Bharosa Na Karo

दोस्तों हमे अक्सर ही बड़े बुजुर्ग कहानियो के माध्यम से तरह-तरह की सीख और संस्कार देते आयें है और वह सीख हमे हमारे जीवन में बहुत लाभदायक सिद्ध होती हैकुछ ऐसा ही आज की कहानी में भी है जिसका शीर्षक है Ajnabi Par Bharosa Na Karo – अजनबी पर कभी भरोसा न करो कहानी में कुछ ऐसा होता है जिससे हमे भी कुछ सीख मिलेगी

कहानी के अनुसार एक बगुले और साँप में काफी गहरी मित्रता होती है, वह लोग आपस में बहुत अच्छे से मिलकर रहते थे और समय समय पर एक दुसरे की सहायता भी करते थे लेकिन एक दिन एक चालक बिलौटा वहां आता है और बगुले और साँप से उनके साथ वहाँ उनके साथ ही रहने की विनती करता है, लेकिन साँप किसी अजनबी को शरण देने से मना करता है लेकिन ऐसा क्या होता है जो सांप ऐसा करने को मना करता है चलिए कहानी में आगे बढ़ते है और जानते है

Ajnabi Par Bharosa Na Karo – अजनबी पर कभी भरोसा न करो

किसी वन में बरगद का एक बड़ा विशाल वृक्ष था। उस वृक्ष के ऊपर बगुलों का झुण्ड रहता था । उसी वृक्ष की जड़ में बिल बना कर एक साँप भी रहता था । दोनों में बड़ी मित्रता थी । जब बगुले भोजन की खोज में नदी के किनारे मछली खाने व पकड़ने जाते तो सौंप उनके बच्चों की रखवाली किया करता था। समय पड़ने पर वे एक दूसरे की सहायता भी किया करते थे ।

धीरे-धीरे जैसे-जैसे समय बीतता गया उन दोनों की मित्रता भी गहरी होती गई । सायंकाल जब बगुले नदी के तट पर से लौटकर अपने बच्चों को भोजन कराते तो बच्चे चीं-चीं करके खुश होते । साँप भी उनकी आवाज़ सुन कर बिल से बाहर निकल आया करता और जो मछलियाँ नीचे गिर जातीं, वह उन्हें खा कर अपना पेट भरता था। इन दोनों का काम इस प्रकार चल जाता था । Ajnabi Par Bharosa Na Karo

साँप बूढ़ा हो चला था। वह इधर-उधर आ जान सकता था। उसे वहीं घर बैठे भोजन मिल जाता था। अतः वह निश्चिन्त था । दोनों बड़े आनन्द से सुख और शान्ति के साथ जीवन बिता रहे थे। किसी को एक दूसरे से कोई शिकायत थी और न परेशानी । दोनों एक दूसरे के काम आया करते थे।

अचानक वहाँ उसी जगह कहीं से एक विलौटा आ धमका। बिलौटा बगुलों से बोला, “मैं परदेशी हूँ अकेला ही है मेरा कोई 1 सहारा नहीं है, अगर आप कहें तो मैं भी यहाँ इसी पेड़ पर रहने लगें ।” बगुलों को बिलौटे की दशा देखकर और उसकी करुणा भरी बातें सुन कर दया आ गई । वे बोले, “भाई, तुम यहाँ निर्भय होकर रहो पर ध्यान रखना कि हमारे बच्चे अभी छोटे हैं। उन्हें कोई किसी प्रकार की हानि न हो।”

साँप ने बगुलों से कहा, “नीति यह कहती है कि बिना जाति, कुल और गोत्र का पता लगाए किसी अपरिचित व्यक्ति को अपने घर आश्रय नहीं देना चाहिए ।” पर बगुले न माने। उन्होंने साँप को बात सुनी-अनसुनी कर दी। वे कहने लगे, “घर आए अतिथि की सेवा करना उसकी सहायता करना हमारा धर्म है । तुम हमारा धर्म पालन में बाधा न डालो।” ऐसा कहकर उन्होंने उस बिलौटे को अपने साथ पेड़ पर रहने की अनुमति दे दी ।

बिलौटा अब बड़े मजे से वहाँ रहने लगा। उसे मछलियाँ खाने का शौक था। उसे भी वहाँ पेट भर मछलियाँ मिल ही जाती थीं। उधर धीरे-धीरे बगुलों के बच्चे भी बड़े होने लगे। उनकी भूख भी बढ़ गई। अब बिलौटे को पेट भर मछलियाँ खाने को नहीं मिल पाती थीं। बिलौटे ने सोचा, मुझे यहाँ रहते काफी समय हो गया है। बगुलों को मेरा विश्वास भी हो गया है। अगर मैं अब बगुलों के बच्चों को खा डालूँ तो मेरे ऊपर वे आसानी से शक नहीं करेंगे । Ajnabi Par Bharosa Na Karo

यही सोच कर बिलौटे ने छिपकर एक-एक कर धीरे धीरे बगुलो के बच्चों को खाना शुरू कर दिया। इस प्रकार अब बिलौटा बगुलों के बच्चों को खाकर अपना पेट भरने लगा। वहाँ धीरे-धीरे बगुलों के बच्चों की संख्या कम होने लगी। बगुलों को शक हो गया कि उनके बच्चों को कोई खा रहा है। वे उस का पता लगाने का प्रयत्न करने लगे।

बिलौटा बहुत चालाक था। वह बगुलों के बच्चों को खाने के बाद उनकी हड्डियाँ और पंख नीचे साँप के बिल के पास ही डाल दिया करता था ताकि शक साँप पर ही किया जा सके, उस पर नहीं । वह स्वयं को हमेशा साफ बचाए रखता था। साँप के बिल के समीप हड्डियों और पंखों का अच्छा खासा देर लग गया था ।

बगुले जब इधर-उधर उड़-उड़ कर यह जानने की कोशिश कर रहे थे कि उनके बच्चों को कौन खाता है; उनकी दृष्टि पेड़ के नीचे बिल के मुँह पर गई । उन्होंने वहाँ साँप के बिल के समीप पंखों और हड्डियों का बहुत बड़ा ढेर देखा । उनका शक पक्का हो गया कि हो न हो यह काम साँप का ही है। उन्हें पक्का विश्वास हो गया कि साँप ने ही उनके बच्चों को खाया है तभी तो उसके बिल के पास इतने पंख और हड्डियाँ इकट्ठी हैं ।

Ajnabi Par Bharosa Na Karo उन तमाम बगुलों ने मिलकर एक साथ साँप पर हमला बोल दिया। साँप बूढ़ा था । उससे चला भी नहीं जाता था। बेचारा जब तक कुछ कहे, बोले उससे पहिले ही बगुलों ने साँप के टुकड़े-टुकड़ कर डाले। सौंप वहीं मर गया। पर बगुलों का मन अभी भी शान्त न हुआ।

उन्होंने अब बिलौटे की खोज की। पर बिलौटा उन्हें कहीं दिखाई नहीं दिया । बगुलों का क्रोध देख कर वह वहाँ से नौ दो ग्यारह हो चुका था। बिलौटा समझ गया कि साँप को मारने के बाद बगुले मुझे ही मारेंगे। मौत के डर से बिलौटा बहुत दूर चला गया था । इस कारण वह बच गया । अगर कहीं बिलौटा बगुलों के हाथ आ जाता तो उसकी हड्डी-पसली एक भी साबुत न बचती

अब बगुलों को अपनी भूल का पता चला। एक बड़े और अनुभवी बगुले ने कहा, “हमने साँप का कहना न माना इसी कारण हमें यह बुरा दिन आज देखना पड़ रहा है। आज हमें पछताना पड़ रहा है । हमने अपने बच्चे भी खोए और विश्वासपात्र मित्र भी ।” किसी ने सच कहा है, ” अपरिचित को कभी आश्रय न दो ।”

शिक्षा: इस “Ajnabi Par Bharosa Na Karo – अजनबी पर कभी भरोसा न करो कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती है कि हमे कभी भी किसी अजनबी पर जल्दी भरोसा नहीं करना चाहिए और हमेशा ही किसी कार्य करने से पहले अपने करीबी लोगो से राय जरुर लेनी चाहिए

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